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प्रेमचन्द की कहानियाँ 42

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9803

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग


मोटे.- ''यह तो मानी हुई बात है कि वे स्वीकार न करेंगे, लेकिन इस झाँसे में आकर जो आदमी पत्रिका का ग्राहक बन जाएगा, वह हमसे अपने रुपए तो न लौटाने आवेगा। दूसरे साल फिर कोई ऐसा ही शिगोफ़ा खिला दूँगा।''

अभी यही बातें हो रही थीं कि भीतर से सोना देवी छमछम करती हुई निकल आईं। उनके मुख-मंडल पर आज ऐसी लुनाई झलक रही थी कि चितामणिजी चकित हो गए। सोना ने चिंतामणि को देखते ही कहा- ''अरे लाला, बहुत दिनन माँ सुधि लीन्हो। अस कोऊ भुलाय देत है।''

चिंता.- ''क्या करूँ भाभीजी, जरा तीरथ करने चला गया था। कुछ परलोक की फ़िकर भी तो करनी चाहिए।''

सोना- ''अरे अबै तुम्हार उमिरै का है जौन लाग्यो परलोक की फ़िकर करे। अभी तो पचासो के पूर नाहीं भयो। तुम्हरे भैया का आज काल यह नई सनक सवार भई है। कितना समझावा कि ई फरफंद में न परो, भगवान जौन भाग में लिखे होई तौन आपुइ घर बैठे मिल जाई, मुदा ई केह की सुनत हैं। अभूँ पाँचो सौ गहकी पतरिका के नाहीं भए, तौन चिल्लाए लागे कि हमरे तो पचीस हजार गहकी होय गए।

मोटे.- ''तुम्हें यहाँ किसने बुलाया जो डाइन की तरह सिर पर सवार हो गई। जाओ अंदर।''

चिंता.- ''क्या अभी पाँच सौ ग्राहक भी नहीं हुए? यह तो मुझसे भी 25 हज़ार कह रहे थे।''

सोना- ''इनका बकै देव। झुठाई माँ तो इनकेर पेरान बसत है।''

मोटे.- ''तुम यहाँ से जाओगी या नहीं?''

सोना- ''नाहीं। देखी का कर लेत हौ। हमसे ई जबरजहती न चले पाई, समुझि राख्यो। संसार का ठगा करो। ठग कहूँ का। हमका आँखी दिखावत है। आँखी फोर दैहों। आज किरोध माँ भरी बैठी हौं। तुहिका लाज नाहीं आवत कि अपनी पतरिका में राँडन के बिहाव की बात लिखत है। बैठी तो है एक ठो राँड बहिनिया, काहे नाही ओहिका बिहाव कर डारत है! कहाँ हैं तोरे पचीस हज़ार गहकी देखों। नकली रजट्टर बनाएके सबका दिखावत फिरत हैं। लाला तुमसे एहके गुन का कही। अब ई दारू पिए लाग।''

चिंता.- ''अरे! सच!! राम राम!''

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