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प्रेमचन्द की कहानियाँ 45

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9806

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतालीसवाँ भाग


रुस्तम खान को ईर्ष्या हुई - यह कोई ऐसा गबरू जवान तो है नहीं, हाँ रंग जरा साफ और बदन सुडौल है। बोले, ‘यार तुम्हारा भाग्य तो जागता हुआ नजर आता है।’

कारे सिंह ने उत्साह से कहा, ‘जागेंगे तो हम दोनों के नसीब साथ ही जागेंगे।’

रुस्तम खान ने सच्ची सहानुभूति और उत्साहवर्धक दृष्टि से देखा, ईर्ष्या न रही। बोले, ‘मुझे तुमसे यही उम्मीद है। मैं तुम्हारे साथ जान देने को तैयार हूँ।’

दोनों दोस्त आपस में फुसफुसाने लगे। उन टुकड़ों के सम्बन्ध में जो सन्देह पैदा हो सकते थे, वे पैदा हुए। कोई छल-कपट तो नहीं है, शायद किसी दुश्मन की शरारत हो, किसी बुरा चाहने वाले ने जाल बिछाया हो। लेकिन औरत का क्या भरोसा! कहीं धोखा दे तो अपना काम निकालकर धता बता दे। उसे ऐसे सैकड़ों आदमी मिल सकते हैं। फिर उसे नाम कैसे पता चला। जरूर किसी धोखेबाज की शरारत है। लेकिन रुस्तम खान ने अपने जबर्दस्त तर्कों से सारे सन्देह दूर कर दिए - ‘धोखा-फरेब कुछ नहीं, उसका दिल तुम पर आ गया है। तुम्हारे जैसा सजीला जवान पूरी दुनिया में नहीं है। चाहे शर्त लगा लो, कोई बात नहीं है। उसकी निगाह तुम पर पड़ी और रीझ गई। और नाम का क्या, किसी से पूछ लिया होगा। खूबसूरत औरत है, लाखों का कारोबार है। और यदि धता ही बता दे, दो चार महीने तो उसके साथ रहने का का मजा लूटोगे। इतने दिनों में तो मालामाल हो सकते हो, चाहे सोने की दीवारें बनवा लो।’

इस समय कारे सिंह को रुस्तम खान एक अत्यन्त अनुभवी, बुद्धिमान और प्यारा दोस्त लगता था। उसके सारे सन्देह मिट गए। अटकते-अटकते बोले, ‘तो तुम्हारी यही सलाह है?’

रुस्तम खान ने दृढ़ता से कहा, ‘हाँ।’

कारे सिंह, ‘कुछ आगा-पीछा न करें?’

रुस्तम खान, ‘आगा-पीछा करके पछताओगे। मोती तो डूबने से ही मिलता है।’

ये बातें हो ही रही थीं कि दोनों सिपाहियों के सामने कागज में लिपटा हुआ एक ठीकरा आकर गिरा। रुस्तम खान ने दौड़कर उठा लिया। यह अफीम की तरंग हो या तरक्की न होने की निराशा, इस मामले में उसकी हैसियत एक सहयोगी और हमदर्द की होने पर भी उसका उत्साह और साहस असली हीरो से कई कदम आगे था। टुकड़ा खोलकर पढ़ने लगा - ‘जवाब का इंतजार है। मैं यहाँ बगीचे में खड़ी हूँ।’

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