कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 46 प्रेमचन्द की कहानियाँ 46प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतालीसवाँ अन्तिम भाग
जोखू झेंपता हुआ बोला- वह बातें जब थीं, जब मालिक लोग चाहते थे कि इसे पीस डालें। अब तो जानता हूँ, मेरे ही माथे हैं। मैं न करूँगा तो सब चौपट हो जायगा।
प्यारी- मैं क्या देख-भाल नहीं करती?
जोखू- तुम बहुत करोगी, दो बेर चली जाओगी। सारे दिन तुम वहाँ बैठी नहीं रह सकतीं।
प्यारी को उसके निष्कपट व्यवहार ने मुग्ध कर दिया। बोली- तो इतनी रात गये चूल्हा जलाओगे। कोई सगाई क्यों नहीं कर लेते?
जोखू ने मुँह धोते हुए कहा- तुम भी खूब कहती हो मालकिन! अपने पेट-भर को तो होता नहीं, सगाई कर लूँ! सवा सेर खाता हूँ एक जून-पूरा सवा सेर! दोनों जून के लिए दो सेर चाहिए।
प्यारी- अच्छा, आज मेरी रसोई में खाओ, देखू कितना खाते हो?
ज़ोखू ने पुलकित हो कर कहा- नहीं मालकिन, तुम बनाते-बनाते थक जाओगी। हाँ, आध-आध सेर के दो रोटा बनाकर खिला दो, तो खा लूँ। मैं तो यही करता हूँ। बस, आटा सान कर दो लिट बनाता हूँ और उपले पर सेंक लेता हूँ। कभी मठे से, कभी नमक से, कभी प्याज से खा लेता हूँ और आ कर पड़ रहता हूँ।
प्यारी- मैं तुम्हें आज फूलके खिलाऊँगी। जोखू- तब तो सारी रात खाते ही बीत जायगी।
प्यारी- बको मत, चटपट आकर बैठ जाओ।
जोखू- जरा बैलों को सानी-पानी देता जाऊँ तो बैलूं।
जोखू और प्यारी में ठनी हुई थी। प्यारी ने कहा- मैं कहती हूँ, धान रोपने की कोई जरूरत नहीं। झड़ी लग जाय, तो खेत डूब जाय। बर्खा बन्द हो जाय, तो खेत सूख जाय। जुआर, बाजरा, सन, अरहर सब तो हैं, धान न सही।
जोखू ने अपने विशाल कन्धे पर फावड़ा रखते हुए कहा- जब सबका होगा, तो मेरा भी होगा। सबका डूब जायगा, तो मेरा भी डूब जायगा। मैं क्यों किसी से पीछे रहूँ? बाबा के जमाने में पाँच बीघा से कम नहीं रोपा जाता था, बिरजू भैया ने उसमें एक-दो बीघे और बढ़ा दिये। मथुरा ने भी थोड़ा-बहुत हर साल रोजा, तो मैं क्या सबसे गया-बीता हूँ? मैं पाँच बीघे से कम न लगाऊँगा।
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