भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
३. रामभक्ति शाखा- इस शाखा का साहित्य अवधी, ब्रज तथा आधुनिक युग में खड़ीबोली में भी लिखा गया है। परब्रह्म दोशरथि राम के चरित्र-गान के द्वारा भारतीय संस्कृति का संरक्षण व जीवन में सात्विकता एवं कर्म-योग की भावनाओं का विकास ही इस साहित्य का मुख्य विषय है। अधिकतर दोहा चौपाई के रूप में प्रबन्ध-काव्य व कवित्त-सवैयों एवं गीतों के रूप में मुक्तक शैली भी इस साहित्य में अपनाई गई है। इस साहित्य के प्रतिनिधि कवि हिन्दी-साहित्य के सूर्य गोस्वामी तुलसीदास का परिचय आगे दिया गया है।
४. कृष्णभक्ति शाखा- यह साहित्य ब्रजभाषा तथा आधुनिक युग में खड़ीबोली में भी लिखा गया है। शैली मुक्तक गीतों की है। कुछ कवियों ने कवित्त, सवैया आदि अन्य छन्दों को भी अपनाया है। बालकृष्ण को परब्रह्म मानकर बालकृष्ण की लीलाओं, राधाकृष्ण के प्रणय-व्यापार, गोपियों का विरह, गोपी-उद्धव-संवाद तथा भ्रमर-गीत इस साहित्य के प्रमुख विषय हैं।
लेखकगण-इस साहित्य के लेखकों में सूरदास सर्वश्रेष्ठ हैं। श्री वल्लभाचार्यजी के पुत्र गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने १. सूरदास, २. नन्ददास, ३. कृष्णदास, ४. परमानन्ददास, ५. कुम्भनदास, ६. चतुर्भुजदास, ७. छीत स्वामी, ८. गोविन्द स्वामी-इन आठ कवियों के 'अष्टछाप' नामक एक कवि-समाज की स्थापना की थी। इस शाखा के प्रतिनिधि कवि सूरदास और मीराबाई का विस्तृत परिचय आगे दिया गया। अन्य कवियों के संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैं-
रसखान-यह अनन्य कृष्ण-भक्त मुस्लिम कवि दिल्ली के पठान सरदार थे। इनका जन्म संवत् १६१७ में और मृत्यु १६९० में हुई। 'सुजान-रसखान' और 'प्रेमवाटिका' आदि इनकी रचनाओं में कृष्णप्रेम के भाव उमड़ रहे हैं।
रहीम-यह सम्राट् अकबर के अभिभावक, बैरमखां के सुपुत्र थे। राम और कृष्ण के भक्त मुस्लिम कवि थे। इनका पूरा नाम अब्दुलरहीम खानखाना था। इनका जन्म संवत् १६१० में और देहान्त १६८९ में हुआ। 'रहीम-सतसई, 'बरवै नायिकाभेद', 'शृंगार सोरठा' आदि इनकी रचनाएँ हैं।
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