भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
इस साहित्य को पहले- १. निर्गुण और २. सगुण इन दो प्रमुख भागों में विभक्त किया गया है।
निर्गुण साहित्य को १. ज्ञानमार्गी २. प्रेममार्गी तथा
सगुण साहित्य को १. राम भक्ति और २. कृष्ण-भक्ति इन दो-दो उपविभागों में बाँट देने पर भक्ति-सम्बन्धी साहित्य उक्त चार भागों में बँट जाता है।
१. ज्ञानमार्गी शाखा-इस शाखा के साहित्य की भाषा सधुक्कड़ी या खिचड़ी है, जिसमें खड़ीबोली, ब्रज, अवधी, राजस्थानी, पंजाबी आदि सभी प्रान्तीय भाषाओं का सम्मिश्रण है। निर्गुण-निराकार की उपासना का प्रचार, तीर्थ-व्रत-पूजा, रोजा-नमाज आदि धार्मिक बाह्य विधि-विधानों एवं बहुदेववाद का खंडन, सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम आदि के द्वारा जीवन को उन्नत बनाने की प्रेरणा, आत्मा की एकरूपता और रहस्यवाद आदि इस साहित्य के विषय हैं। साखी (दोहा) सबद (पद या गीत) तथा रमैनी की मुक्तक शैली में यह साहित्य निर्मित हुआ है।
कविगण-इस साहित्य के सर्वप्रथम प्रवर्तक व प्रतिनिधि कवि सन्त कबीर थे। इनके अतिरिक्त श्रीनानकदेव, दादूदयाल, सुन्दरदास, मलूकदास आदि अनेक सन्तों ने अपने साहित्य के द्वारा हिन्दी भाषा तथा राष्ट्र को गौरवान्वित किया है। कबीर के अतिरिक्त कुछ एक अन्य प्रमुख कवियों का विवरण दिया जाता है-
श्रीगुरु नानकदेवजी-यह सिक्ख-पंथ के प्रवर्तक थे। इन का जन्म संवत् १५२६ में लाहौर जिले के तिलवंडी गाँव में तथा सत्य-लोकवास संवत् १५९६ में हुआ। इनके भक्ति-भावपूर्ण पदों का संग्रह संवत् १६६१ में 'ग्रन्थसाहब' में किया गया।
दादूदयाल-यह दादू-पंथ के प्रवर्तक थे। इनका जन्म संवत् १६०१ में तथा देहान्त १६६० में हुआ। इनकी रचनाएँ दादू की वाणी के नाम से संकलित हैं।
सुन्दरदास- इनका जन्म संवत् १६५३ में तथा मृत्यु १७४६ में हुई। यह निर्गुण शाखा में सबसे अधिक विद्वान् और वेद-पुराणादि शास्त्रों के पण्डित थे। 'सुन्दरविलास', 'ज्ञान-समुद्र' आदि इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
२. प्रेममार्गी शाखा- इस शाखा का साहित्य पूर्वी हिन्दी या अवधी भाषा में लिखा गया। राजकुमार और राजकुमारियों की प्रेम-कथाओं के द्वारा आत्मा और परमात्मा का मिलन दिखाना ही इस साहित्य का प्रतिपाद्य विषय है। दोहा, चौपाई छन्दों में फारसी की 'मसनवी' पद्धति पर प्रबन्ध-काव्यों की शैली में यह साहित्य लिखा गया।
मलिक मुहम्मद जायसी इस शाखा के प्रमुख प्रतिनिधि कवि थे। इनके अतिरिक्त मंझन, कुतबन आदि अनेक मुस्लिम-सूफी सन्तों ने भी पर्याप्त मात्रा में प्रेम साहित्य लिखा। इस सूफी साहित्य का प्रादुर्भाव पहले-पहल फारसी में हुआ। मुसलमानों के भारत में बस जाने पर यहाँ के उक्त सूफी सन्तों ने देश-भाषा हिन्दी में प्रेम-काव्यों की रचना कर हिन्दू-मुस्लिम-वैमनस्य को मिटाने में महत्वपूर्ण योग दिया है। यह सूफी सन्त बडे त्यागी और सात्विक प्रकृति के होते थे। फारस के आरंभिक सूफी सन्त सूफ अर्थात् ऊन का एक सफेद चोगा पहने रहते थे; इसीलिए इन्हें 'सूफी' कहा गया है।
लेखक-सूफी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि कवि मलिक मुहम्मद जायसी का विस्तृत परिचय आगे दिया गया है।
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