भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
|
0 |
हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
प्रगति-युग
छायावाद और रहस्यवाद-सम्बन्धी कविताएँ इतनी सूक्ष्म और अलौकिक हो गईं कि उनका जीवन से कुछ भी सम्बन्ध न रहा। इसलिए पीड़ित मानव-जाति, शोषित किसान और मजदूर के प्रति सहानुभूति प्रकट करने के लिए तथा पददलित मानव का उद्धार करने के लिए गांधीवाद और मार्क्सवाद से प्रभावित प्रगतिवाद के साहित्य का निर्माण आरम्भ हुआ।
इस साहित्य की भाषा में कृत्रिम अलंकारों की भरमार नहीं थी। यह साहित्य छायावाद के कल्पनालोक से ठोस धरातल पर उतर आया।
कलाकार
रामधारीसिंह 'दिनकर'-(जन्म-संवत् १९६५) आप हिन्दी के प्रसिद्ध प्रगतिवादी कलाकार हैं। 'रेणुका' और 'हुंकार' की जोशीली कविताओं ने इन्हें लोकप्रिय बना दिया। 'कुरुक्षेत्र' व 'रश्मिरथी' आदि काव्यों में प्राचीन ऐतिहासिक पात्रों के द्वारा वर्तमान की समस्याओं का सुन्दर चित्रण हुआ हे। पद्य के साथ इनका गद्य भी प्रौढ़ है।
उपेन्द्रनाथ 'अश्क' (जन्म-सं० १९६७) ने कहानी, उपन्यास, नाटक, कविता आदि सभी कुछ लिखा है। इनके 'स्वर्ग की झलक', 'जय-पराजय' आदि नाटक; 'चेतन', 'गर्म राख' आदि उपन्यास व 'प्रातप्रदीप' आदि काव्य-संग्रह प्रसिद्ध हैं।
सोहन लाल द्विवेदी की 'भैरवी' आदि रचनाओं में देशभक्ति-पूर्ण कविताएँ हैं। 'अज्ञेय' जी कवि के साथ अच्छे उपन्यासकार और कहानी-लेखक भी हैं। 'शेखर' उपन्यास की खूब धूम रही। 'भग्नदूत' 'चिन्ता', 'इत्यलम्' आदि इनके काव्य-संग्रह हैं। रामेश्वर शुक्ल 'अंचल', शिवमंगलसिंह 'सुमन', भारतभूषण अग्रवाल, रांगेय राघव और देवराज 'दिनेश' आदि प्रगतिवाद के उत्कृष्ट कलाकार हैं। श्री नगेन्द्रजी, शान्तिप्रिय द्विवेदी, श्री हजारीप्रसाद द्विवेदी, श्री गुलाबराय, श्री वृन्दावनलाल वर्मा, श्री इलाचन्द्र जोशी, श्री रामविलास शर्मा, श्री बनारसीदास चतुर्वेदी, श्री राहुल सांकृत्यायन, श्री यशपाल, श्री चन्द्रगुप्त विद्यालंकार, श्री नन्द दुलारे वाजपेयी, श्री चन्द्रबली पांडेय, श्री भगवतीप्रसाद वाजपेयी, श्री वासुदेवशरण अग्रवाल, श्री जैनेन्द्रकुमार, श्री विष्णु प्रभाकर, श्री महाराजकुमार रघुवीरसिंह आदि इस युग के उत्कृष्ट समालोचना, निबन्ध व कथा-साहित्य के निर्माता एवं प्रमुख गद्यलेखक रहे हैं।
|