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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809

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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

स्त्री लेखिकाएँ-

महादेवी वर्मा और सुभद्राकुमारी चौहान के अतिरिक्त हेमवती देवी, तारा पांडे, विद्यावती कोकिल, दिनेशनन्दिनी डालमिया, निर्मला माथुर, शान्ति सिंहल, सुमित्राकुमारी सिन्हा आदि अनेक कवयित्रियों ने अपनी कविताओं के द्वारा तथा शिवरानीदेवी, कमलादेवी चौधरानी, रजनी पणिक्कर, उषादेवी मित्रा आदि कथा-लेखिकाओं ने कहानी एवं उपन्यासों के द्वारा हिन्दी-साहित्य की श्रीवृद्धि में पर्याप्त योग दिया है।

स्वतन्त्र भारत के राष्ट्रपति महामहिम डा० राजेन्द्रप्रसाद जी, हिन्दी के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले श्री राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन आदि राष्ट्र के उन्नायक यक नेतागणों, व साहित्य-सेवियों के अथक प्रयत्नों व हमारे दक्षिण भारतीय भाइयों की उदाराशयतापूर्ण सद्‌भावनाओं से राष्ट्रभाषा हिन्दी राजभाषा के उचित पद पर प्रतिष्ठित हो गई है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के कुछ वर्षों में इस विषय में ध्यानपूर्वक प्रयास हुआ। इस प्रयास में संसद में श्री दिनकर, नवीनजी, गुप्तजी, राजकुमार डा० रघुवीरसिंह व श्री सेठ गोविंददास जैसे हिन्दी-साहित्य सेवियों ने हिन्दी की वाणी को हर ओर प्रखर किया। आल इंडिया-रेडियो-स्टेशन के जनरल डाइरेक्टर के पद को भी श्री जगदीशचन्द्र माथुर जैसे हिंदी के उत्कृष्ट साहित्यकार सुशोभित कर इस विषय में सहयोग दिया।

बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यभारत, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि प्रांतों में हिंदी राज्य-भाषा के रूप में प्रयुक्त होने की दिशा में प्रयास हुए।  परंतु इससे अधिक इसका प्रसार बम्बई, पंजाब, हिमाचल-प्रदेश, दिल्ली में इतना अधिक नहीं हो पाया। हाँ, यह अवश्य हुआ है कि इन सभी स्थानों में लोग अभी भी बोलचाल की भाषा में हिंदी का प्रयोग कर लेते हैं।

श्री खेर की अध्यक्षता में राज्य-भाषा-आयोग की स्थापना हुई थी, परंतु इस विषय में प्रभावी कार्य नहीं हो पाया है। इस प्रकार सं० ७०० से लेकर आज तक के हिन्दी-साहित्य, उसकी प्रमुख प्रवृत्तियों, कृतियों व परम्परा के सामान्य दिग्दर्शन के पश्चात् अब यहाँ भक्ति, रीति व आधुनिक काल के कई प्रतिनिधि कलाकारों के जीवन व साहित्य का व्यापक परिचय आगामी पृष्ठों में दिया जाता है।

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"हिंदी साहित्य का दिग्दर्शन" समय की आवश्यकताओं के आलोक में निर्मित पुस्तक है जोकि प्रवाहमयी भाषा का साथ पाकर बोधगम्य बन गयी है। संवत साथ ईस्वी सन का भी उल्लेख होता तो विद्यार्थियों को अधिक सहूलियत होती।

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