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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809

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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

रचनाएँ- यूँ तो गोस्वामी जी की अनेक रचनाएँ गिनाई जाती हैं, पर उनमें से निम्न १३ रचनाएँ प्रामाणिक मानी जाती हैं-

(१) रामलला नहछू। (२) वैराग्य-संदीपनी। (३) रामाज्ञाप्रश्न। (४) जानकी मंगल। (५) रामचरितमानस। (६) तुलसी-सतसई। (७) पार्वती-मंगल। (८) गीतावली। (९) विनय-पत्रिका। (१०) कृष्ण-गीतावली। (११) बरवै रामायण। (१२) दोहावली। (१३) कवितावली (हनुमान्बाहुक सहित)।

रामचरितमानस- यह हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। अवधी भाषा में लिखित इस महाकाव्य में सात काण्ड हैं। बालकाण्ड में भगवान् राम के जन्म और विवाह आदि की कथा है। अयोध्याकाण्ड में राम के वनवास तथा दशरथ की मृत्यु और भरत का ननिहाल से लौटकर राम को मनाने के लिए चित्रकूट जाना एवं नन्दीग्राम में आकर उनका राम के प्रतिनिधि के रूप में राज्य करना वर्णित है। अरण्यकाण्ड में सीताहरण, सुन्दरकाण्ड और लंकाकाण्ड में रावण पर चढ़ाई व रावण का वध एवं विजयी राम के अयोध्या लौट आने की कथा है। उत्तरकाण्ड में राम के राज्य-तिलक एवं रामराज्यादि का वर्णन है। रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने भावों की अपूर्व गंगा बहाई है। ऐसा शायद ही कोई हिन्दी-भाषी हो जिसे मानस के कुछ अंश पढ़ने-पढ़ाने, सुनने-सुनाने का सौभाग्य प्राप्त न हुआ हो। वास्तव में हिन्दू-धर्म का सच्चा स्वरूप देखना हो तो रामचरितमानस को देख जाइए।

कवितावली रामायण- इसमें भी सात काण्डों में रामकथा कही गई है। पर यह ग्रन्थ प्रबन्ध-काव्य के रूप में न लिखा जाकर मुक्तकों के रूप में ही लिखा गया था। इसमें दसों रसों का सुन्दर वर्णन हुआ है। रामकथा के साथ-साथ इसमें गोस्वामी जी ने अपने जीवन की घटनाओं का भी अनेक पदों में उल्लेख किया है। इसकी भाषा ब्रज और शैली कवित्त छप्पय की है। मानस यदि भक्ति-अन्य है तो कवितावली मुख्य रूप से काव्य-ग्रन्थ है।

विनयपत्रिका- यह अनेक रागरागिनियों से युक्त गीतों में लिखा हुआ गोस्वामी जी का एक परम प्रौढ ग्रन्थ है। विनयपत्रिका तक आते-आते गोस्वामी जी का काव्य-कौशल अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया है। इस पुस्तक के रूप में गोस्वामी जी ने अपने और अपने समाज के उद्धार के लिए भगवान् राम के दरबार में विनय-पत्रिका (प्रार्थनापत्र) भेजी है। यह संस्कृतनिष्ठ भाषा में लिखा गया है।

गीतावली- इसमें भी सात काण्डों में रामकथा कही गई है, पर यह भी कवितावली के समान मुक्तक काव्य ही है। इसके गीतों में काव्य-सौन्दर्य अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गया है। ब्रजभाषा का यह मधुर सरस, सुन्दर, स्वाभाविक रूप गीतावली और कृष्ण-गीतावली के इन गीतों में जैसा मिलता है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है।

कृष्णगीतावली- इसमें श्रीकृष्ण-चरित-सम्बन्धी ६१ पद हैं। कृष्ण की बाल-लीलाओं का बड़ा ही हृदयस्पर्शी चित्र इसमें अंकित किया गया है।

दोहावली- इसमें ५७३ फुटकर दोहे है, जिनमें नीति, भक्ति, वैराग्य आदि अनेक विषयों का समावेश हुआ है। इसमें बहुत-से दोहे रामचरितमानस, रामाज्ञा-प्रश्न और सतसई के भी मिल गये है।

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