भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
तुलसी-सतसई- इसमें ७४७ दोहे और ७ सर्ग हैं। भाषा में भी वैसी प्रौढ़ता नहीं। यह गोस्वामी जी के आरम्भिक दोहों का संग्रह प्रतीत होता है। रामचरितमानस और दोहावली आदि अन्य ग्रन्थों के भी इसमें अनेक दोहे संकलित है।
पार्वती-मंगल- इसमें सौहर छंद में लिखे हुए १६४ छंदों में शिव-पार्वती का वर्णन किया गया है। यह गोस्वामी जी की एक छोटी-सी किन्तु परम प्रौढ़ रचना है। भाषा, भाव, छंद एवं प्रभाव की दृष्टि से यह छोटा-सा काव्य अत्यन्त ही सुन्दर बन पड़ा है। इसकी भाषा सुललित पूर्वी अवधी है।
जानकी-मंगल- सौहर और हरिगीतिका छंदों में लिखी हुई इस छोटी-सी रचना में वाल्मीकीय रामायण के आधार पर राम और सीता के विवाह का वर्णन है।
राम-लला नहछू- इसमें राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुध्न, इन चारों भाइयों के यज्ञोपवीत के समय के नहछू का वर्णन है। यह २० छन्दों की गोस्वामी जी की सबसे छोटी रचना है।
वैराग्य-संदीपनी- यह ६२ कविताओं की पुस्तक है जो दोहा, चौपाई और सोरठों में लिखी गई है। ज्ञान, वैराग्य, संत-महिमा आदि का इसमें वर्णन हुआ है।
रामाज्ञा-प्रश्न- इसमें ७ सर्ग हैं। प्रत्येक सर्ग में सात-सात दोहों के सात सत्तक हैं। इसमें प्रश्नों के उत्तर मिलते हैं।
बरवै रामायण- बरवै नामक छोटे-से छन्द में लिखी गई इस पुस्तक में भी सात काण्डों में रामकथा कही गई है।
हनुमान् बाहुक- यह वास्तव में कवितावली का ही अन्तिम भाग है जिसमें अपनी बाहुपीड़ा के निवारणार्थ गोस्वामीजी ने हनुमान् जी से प्रार्थना की है।
रामशलाका प्रश्न- यह रामायण की ९ अर्धालियों (चौपाइयों) का संकलन है, जिसमें प्रश्नों का उत्तर मिल जाता है। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य रचनाएं भी गोस्वामी जी के नाम पर मिलती है पर उनकी प्रामाणिक रचनाएँ यही मानी जाती हैं। इनमें से रामचरितमानस, कवितावली, गीतावली, जानकीमंगल, रामलला नहछू और बरवै रामायाण-इन ६ पुस्तकों में एक ही रामकथा कही गई है। एक ही कथा को ६ ग्रन्थों में कहने के अनेक कारण हैं। सर्वप्रथम तो एक ग्रन्थ के एक प्रकरण में जो सुन्दर भाव छूट गया उसे दूसरे ग्रन्थ में समाविष्ट कर दिया गया है। दूसरे, किसी एक काव्य में जीवन के एक अंश को प्रधानता दी गई है तो दूसरे में दूसरे को। मानस भक्ति-प्रधान काव्य है तो कवितावली और गीतावली भावप्रधान या रस-प्रधान काव्य। इसके विपरीत बरवै रामायण आदि ग्रन्थ कला-प्रधान या अलंकार-प्रधान है। इन विविध दृष्टियों के कारण ही गोस्वामी जी ने एक ही रामकथा को भिन्न-भिन्न रूपों से उक्त ६ ग्रन्थों में आबद्ध किया है।
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