भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
इस प्रकार हार्दिक भावनाओं, अनुभूतियों एवं चेतनाओं को सजीव एवं मूर्त्त रूप में निश्छल भाव से अभिव्यक्ति प्रदान करने वाली साधिका एवं प्रभु-प्रेम की उन्मुक्त गायिका मीराबाई की रचनाएँ केवल उनके मुक्तक पदों के रूप में ही उपलब्ध होती हैं।
मीराबाई वास्तव में हिन्दी की एक अनुपम कलाकार थीं। जैसी साधना, तन्मयता, सरलता, प्रियमिलन का दिव्य आनन्द और विरह-वेदनात्मक प्रेम की पीड़ा मीरा के पदों में मिलती है वैसी अन्यत्र देखने में नहीं आती। निर्गुणोपासना और सगुण भक्ति दोनों का इनके पदों में अपूर्व समन्वय हुआ है। कबीर और नानक की ज्ञानगरिमा, तुलसी की भव्य भक्ति-भावना तथा महाप्रभु चैतन्य व वल्लभाचार्य जी का आत्म-निवेदन एवं जयदेव, विद्यापति व सूर के गीतों की सुधोपम मधुरता को एकत्र प्राप्त करना हो तो मीरा के सरस पदों का रसपान कीजिए। मीरा के गुरु के सम्बन्ध में कहा जाता है कि रैदास उनके गुरु थे, पर रैदास का समय मीरा से बहुत पहले हे अत: उनका मीराबाई का गुरु होना संभव नहीं।
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