भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
भारतेन्दु जी की रचनाएँ- भारतेन्दु जी की रचनाएँ इतनी अधिक है कि उन्हें देखकर इनकी अपूर्व प्रतिभा, उनके अध्यवसाय और उनकी हिन्दी-सेवा की अटूट लगन पर विस्मय होता है। आपने १६-१७ वर्ष के छोटे-से साहित्यिक जीवन में हिन्दी-साहित्य को जो अनुपम रत्न भेंट किये वे गुणोत्कर्ष की दृष्टि से बहुमूल्य तो हैं ही, परिमाण की दृष्टि से भी इतने अधिक हैं कि केवल उनके नाम गिनाने के लिए ही अत्यधिक स्थान चाहिए। उनकी रचनाएं नाटक, काव्य, इतिहास, निबन्ध और आख्यान-इन पाँच रूपों में उपलब्ध होती हैं।
नाटक-भारतेन्दु की महत्वपूर्ण रच नाएँ मौलिक तथा अनूदित नाटक हैं। उनके मौलिक नाटक निम्नलिखित हैं-
१. सत्य हरिश्चन्द्र, २. चन्द्रावली, ३. भारत-दुर्दशा, ४. नीलदेवी, ५. अन्धेर नगरी, ६. वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, ७. विषस्य विषमौषधम, ८. सती-प्रथा और ९. प्रेमयोगिनी। इनमें से दो अपूर्ण हैं।
इन नाटकों के अतिरिक्त उनके ८ अनूदित नाटक हैं, जो इस प्रकार हैं-१. मुद्राराक्षस, २. धनन्जय-विजय, ३. रत्नावली नाटिका, ४. कर्पूरमंजरी, ५. विद्यासुन्दर, ६. भारत-जननी, ७. पाखंड-विडम्बन और ८. दुर्लभबन्धु। इनमें से प्रथम तीन संस्कृत के अनुवाद हैं। चौथा प्राकृत का अनुवाद है। पाँचवाँ, छठा और सातवाँ बँगला के अनुवाद हैं और अन्तिम अंग्रेजी का अनुवाद है। यह अपूर्ण भी है। दो अनूदित नाटक और हैं जो अभी प्रकाशित नहीं हुए।
काव्य- नाटक-साहित्य की भाँति भारतेन्दु का काव्य-साहित्य भी अत्यन्त विस्तृत और विशाल है। उनके भक्ति-काव्य सम्बन्धी ४१ ग्रंथ मिलते हैं। यह सब छोटे-छोटे ग्रन्थ हैं परन्तु भक्ति-साधना से भरे है। उनके शृंगार-काव्य भी कम नहीं है। होली, मधुमुकुल, प्रेम फुलवारी, सतसई आदि उनके काव्य-ग्रन्थ हैं। विजयिनी-विजय,वैजयन्ती, भारत-वीणा, सुमनाञ्जलि आदि उनकी राष्ट्रीय और राजभक्ति सम्बन्धी रचनाएँ है।
इतिहास- भारतेन्दु ने कई इतिहास सम्बन्धी गवेषणापूर्ण लेख भी लिखे हैं। काश्मीरकुसुम, महाराष्ट्र देश का इतिहास, अग्रवालों की उत्पत्ति, दिल्ली-दरबार-दर्पण आदि उनके ऐसे ही ग्रन्थ हैं।
निबन्ध और आख्यान- भारतेन्दु ने निबन्ध और आख्यान भी लिखे है पर इनमें से अधिकांश अपूर्ण है। सुलोचना, मदालसा और लीलावती उनके लिखे आख्यान हैं। परिहास-पंचक में इनका हास्यरस सम्बन्धी गद्य हे। परिहासिनी में छोटे-मोटे हास्य-लेख हैं।
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