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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809

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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

कानन-कुसुम- इसमें संवत् १९७६ से पूर्व की रचनाएँ संकलित है। रंगीन और सादे, सुगन्ध वाले और निर्गन्ध, मकरन्द से भरे और पराग से लिपटे सभी प्रकार के कुसुम इसमें सजा दिये गये हैं। प्रेम और प्रकृति सम्बन्धी भावों की इसमें मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है।

करुणालय- यह अतुकान्त मात्रिक छन्द में लिखा हुआ हिन्दी का पहला भाव-नाट्य है। यहाँ पर कवि की भाषा की सर्वप्रथम प्रौढ़ परिमार्जित रूप प्रकट हुआ है।

महाराणा का महत्व- महाराणा प्रताप के जीवन से सम्बद्ध यह अतुकान्त छन्द में लिखी हुई इतिवृत्तात्मक रचना है। भाषा और भावों की प्रवाहात्मकता दर्शनीय है।

प्रेम-पथिक- इसकी रचना पहले ब्रजभाषा में हुई थी, फिर इसे खड़ीबोली में रूपान्तरित कर दिया गया। इसमें दो प्रेमी हृदयों का मर्मस्पर्शी चित्र अंकित किया गया है। दो पड़ोसी मित्रों के पुत्र-पुत्री प्रणय-पाश में बंध जाते हें। लड़की का दूसरे व्यक्ति से विवाह हो जाने पर युवक तपस्वी बनकर एक कुटी में प्रविष्ट होता है, वहीं पर उसकी तापस-वेश-धारिणी प्रेमिका से भेंट होती है। इस प्रकार इसमें प्रेम को पावनतम रूप में प्रकट किया गया है।

झरना- यह छायावाद की सर्वप्रथम रचना है। इसमें युवावस्था में प्रकट होने वाली वासना के साथ संयम के अन्तर्द्वन्द्व का चित्र प्रभावपूर्ण है।

आँसू- छायावाद की चर्चा 'आँसू' के प्रकाशन से पूर्व ही होने लगी थी। पर यह चर्चा केवल ऐतिहासिक महत्त्व 'रखती थी। ज्यों ही 'आँसू' की सृष्टि हुई, प्रसाद' इतिहास-गणना के आदिपुरुष ही नहीं रहे, युग की काव्य-प्रवृत्ति की ठीक-ठीक व्यंजना करने वाले प्रतिनिधि कवि के रूप में भी स्वीकृत हुए। इसीलिए 'आँसू' का प्रकाशन छायावाद-युग की ऐतिहासिक घटना माना जाता है। छायावाद की व्याख्या और उसकी प्रवृत्तियों को समझने के लिए किसी साहित्य-शास्त्र के आचार्य का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं, आँसू का अध्ययन ही पर्याप्त है।

लहर- यह संगीत और कल्पना-प्रधान मुक्तक काव्य है। इसमें प्रकृति के सुन्दर चित्रों के साथ अतीत के चलचित्र भी अंकित हुए हैं, जिनमें कवि के वैयक्तिक अतीत की अनुभूतियाँ तथा इतिहास की पुरातन चित्रावलियाँ दोनों सम्मिलित हैं। 'अशोक की चिन्ता', 'शेरसिंह का शस्त्र-समर्पण', 'पिछोला की प्रतिध्वनि', 'प्रलय की छाया' तथा 'अरी ओ करुणा की शान्त कछार' आदि कविताओं में पुरातन इतिहास के प्रखर चित्र मुखरित हुए हैं।

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