भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
उपन्यासों के समान प्रसाद जी का कहानी-साहित्य भी बहुत बढ़ा-चढ़ा है। हिन्दी के उच्चकोटि के कहानी-लेखकों में आपका प्रमुख स्थान है। प्रसाद जी ने सं० १९६८ से कहानी लिखना आरम्भ कर दिया था। आपकी सर्वप्रथम कहानी 'ग्राम' सं० १९६८ में 'इन्दु' में प्रकाशित हुई थी। इनकी कुछ प्रारम्भिक कहानियाँ 'चित्राधार' में संग्रहीत हैं। इसके अतिरिक्त 'छाया' (सं० १९६९), प्रतिध्वनि (सं० १९८३), आकाश दीप (सं० १९८६), आँधी (सं० १९८८) और इन्द्रजाल (सं० १९९०) पाँच संग्रह हैं। इन कहानियों को ऐतिहासिक और सामाजिक दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। 'आँधी' 'और 'इन्द्रजाल' में अनेक ऐतिहासिक कहानियाँ हैं।
कहानियों के अतिरिक्त आपके निबन्ध भी उच्चकोटि के हैं। इनके निबन्धों को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है। (१) इनके आरम्भिक काल के पाँच प्रबन्ध 'चित्राधार' में दिये गये हैं। (२) वे निबन्ध हैं जो इन्होंने भूमिका के रूप में लिखे हैं। 'कामायनी' महाकाव्य समाप्त करने के पश्चात् 'इन्दु' पर एक नाटक लिखने का उनका विचार था और उसके लिए उन्होंने सामग्री भी एकत्र की थी। यह सामग्री निबन्ध के रूप में प्रकाशित हुई और इससे पता चला कि इन्दु ही प्राचीन आर्यावर्त के प्रथम सम्राट् थे। इसमें प्रसाद जी की प्रखर प्रतिभा और गवेषणा-शक्ति का आभास मिलता है। (३) इस भाग में प्रसाद जी के उन निबन्धों की गणना की जाती है जिनका संकलन उनकी मृत्यु के पश्चात् 'काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध' के नाम से किया गया है। ये निबन्ध भाव, भाषा तथा शैली की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इन निबन्धों की उनके प्रथम निबन्धों से तुलना करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रसाद जी ने बीस वर्ष की अवधि में अपने को कितना ऊँचा उठाया था।
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