भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
रचनायें
भारत-भारती- इसके लिखने की प्रेरणा द्विवेदी जी से ही प्राप्त हुई थी। यह गुप्त जी की सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है। काव्य-कला के स्थान पर उपदेशात्मकता की प्रधानता होते हुए भी जन-मन को सबसे अधिक इसी ने प्रभावित किया है।
'वैतालिक' और 'स्वदेश-संगीत' कथात्मक न होकर भावात्मक राष्ट्रीय काव्य हैं।
'अजित' एक काल्पनिक कथा है। इसमें सामयिक इतिहास और राष्ट्रीयता का सुन्दर समन्वय हुआ है। गुप्त जी ने इसे सन् १९४३ में जेल में ही लिखा था। पहले इसका नाम 'कारा' रखा गया था। प्रेमचन्द जी के उपन्यासों के समान इस काव्य में भी भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम का सजीव चित्र अंकित हुआ है।
किसान- इसमें एक ऐसे किसान की करुण कथा है जो अफ्रीका में कष्टमय जीवन बिताकर महायुद्ध में मारा जाता है।
हिन्दू- इसमें हिंदू-जागृति का शंखनाद बजाया गया है। इसमें भारत की भव्य झाँकी दर्शनीय है।
पत्रावली- 'स्वदेश-संगीत' के समान यह कथात्मक काव्य नहीं है। 'स्वदेश-संगीत' में जहाँ राष्ट्रीय भावनाएं विकसित हुई हैं वहाँ 'पत्रावली' में जातीय भावनाएं।
रामायणकालीन काव्यों में 'पंचवटी'और 'साकेत' की गणना की जा सकती है।
पंचवटी-इसमें ही सर्वप्रथम गुप्त जी की काव्य-कला का स्वरूप स्पष्ट हुआ है। यहाँ प्रकृति के साथ कवि के अन्तर का सामंजस्य दिखाई देता है। कवि उपदेशात्मकता छोड़ काव्य-सौन्दर्य में रम रहा है। 'पंचवटी' के राम, लक्ष्मण और सीता मानवता की सामान्य भावभूमि पर ही विचरण करते हैं। प्राय: अन्य सभी काव्यों में लक्ष्मण का चित्र हार्दिक भावनाओं से शून्य एक वीर के रूप में ही अङ्कित किया गया है, किंतु 'पंचवटी' के लक्ष्मण में वीरता के साथ हार्दिकता भी लक्षित होती है।
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