भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
साहित्य-सेवा- निरालाजी अपनी अपूर्व प्रतिभा के कारण छोटी-सी अवस्था में ही हिन्दी-साहित्य में अपना विशेष स्थान बना चुके थे। श्रीयुत आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी आपकी प्रतिभा से अत्यन्त प्रभावित थे। वे आपको सदा सहयोग और प्रोत्साहन देते रहते थे। महिषादल राज्य छोड़ने पर संवत् १९७८ में द्विवेदीजी ने ही आपको श्री रामकृष्ण मिशन के प्रधान केन्द्र वैलूर मठ में 'समन्वय' पत्र का सम्पादन करने के लिए भेजा था। इस प्रकार निरालाजी को उनकी रुचि का काम मिल गया। यहाँ पर आपने भारतीय दर्शन का गम्भीर अध्ययन किया जिससे आपके विचारों में पर्याप्त परिपक्वता और प्रौढ़ता आ गई।
अभी निरालाजी 'समन्वय' में सम्पादन-कार्य कर ही रहे थे कि कलकत्ता से 'मतवाला' पत्र निकला। आपने आरम्भ से ही 'मतवाला' का सम्पादन-भार सँभाल लिया और कुछ ही दिनों में इसको ऐसा चमकाया कि इसका नाम बच्चे-बच्चे के मुख पर चढ गया। निरालाजी के सम्पादन-काल में 'मतवाला' हास्य-व्यंग्य का मुख्य पत्र बन गया। 'मतवाला' की एक वर्ष में ही उन्नति करके निरालाजी लखनऊ आ गये और वहाँ से अपने गाँव चले गये। इन्होंने फिर लखनऊ को अपना स्थानीय आवास बनाने का विचार किया। थोड़ा ही समय वहाँ रहकर वे प्रयाग आ गये। यहाँ कुछ वर्ष हिन्दी की प्रसिद्ध कवयित्री श्रीमती महादेवी वर्मा की संस्था 'साहित्यकार-संसद' में रहे; किंतु अब अपने दूसरे मित्रों के साथ रहकर जीवन बिता रहे हैं।
संवत् २००३ में काशी की नागरी-प्रचारिणी सभा ने आपकी जयन्ती बड़े समारोह के साथ मनाई। हिन्दी के प्राय: सभी प्रमुख साहित्यकारों ने आपको बड़े मार्मिक शब्दों में श्रद्धाञ्जलि भेंट की। दो वर्ष पूर्व कलकत्ता में एकत्र सहस्रों साहित्यिक कलाकारों व नर-नारियों ने आपका बड़े उत्साह के साथ अभिनन्दन करते हुए आपको एक अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया है।
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