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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809

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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

काव्य-प्रतिभा- संस्कृत, बँगला, संगीत एवं दर्शनादि का आपने गम्भीर अध्ययन किया है। आपकी रचनाओं में इन सब का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है। निरालाजी हिन्दी के युगान्तरकारी स्वच्छन्दवादी कवि हैं। हिन्दी-साहित्य में 'प्रसाद' जी ने जिन नवीन प्रवृत्तियों को पल्लवित किया था, उन्हें विकसित करने वालों में आप सर्वप्रमुख हैं। आधुनिक युग की रहस्यवाद सम्बंधी काव्यधारा के ये मुख्य स्तम्भ समझे जाते हैं। प्रसादजी की भाँति दार्शनिकता तथा आध्यात्मिकता इनके काव्य की दो विशेषताएं हैं। भाषा और छन्द के बन्धन को तोड़कर इनकी प्रतिभा ने एक अभिनव पथ को परिष्कृत किया है। अतुकान्त एवं मुक्त छन्द की कविता के ये कुशल काव्यकार हैं। हिन्दी में गीति-काव्य की प्रणाली का प्रचार इन्हीं से हुआ है। गम्भीर दार्शनिकता और निराली प्रतिपादन-शैली के कारण अनेक स्थलों पर इनके चित्र उलझे हुए एवं दुरूह हो गये हैं किन्तु जहाँ भाषा सरल और कल्पना स्वाभाविक है, वहाँ इनके व्यक्तित्व एवं प्रतिमा का प्रभाव पर्याप्त स्पष्ट और आकर्षक है। इनके साहित्य पर बँगला और अंग्रेजी का प्रभाव है। रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द जी के दार्शनिक विचार आपकी दार्श- निक रचनाओं में सर्वत्र झलकते हैं। 'तुम और मैं' शीर्षक रचना अत्यन्त गम्भीर और लोकप्रिय है। अमूर्त भावों को मूर्त रूप देने में यह भी प्रसाद जी के समकक्ष है'। 'महाराज शिवाजी का पत्र', 'तुलसीदास', 'राम की साधना' आदि इनकी रचनाओं में प्राचीन संस्कृति के प्रति प्रेम प्रकट होता है। 'भिक्षुक', 'विधवा', 'तोड़ती पत्थर' आदि इनकी रचनाएँ प्रगतिवाद का रूप प्रकट करती हैं। कविताओं के अतिरिक्त आपकी कहानियाँ, उपन्यास और निबन्ध भी लोकप्रिय एवं सस्कृत हुए हैं। इनकी निम्नलिखित रचनाएँ उल्लेखनीय हैं।

अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, कुकरमुत्ता, बेला, अणिमा अपरा, और नये पत्ते काव्य-संग्रह हैं। अप्सरा, अलका, निरुपमा, प्रभावती, उच्छृङ्खल, चोटी की पकड़, काले कारनामे, चमेली आदि उपन्यास। लिली, सखी, चतुरी-चमार, सुकुल की बीवी आदि कहानी-संग्रह। कुल्ली भाट, बिल्लेसुर बकरिहा आदि रेखा-चित्र। प्रबन्ध-पद्य, प्रबन्ध-प्रतिभा, प्रबन्ध-परिचय, रवीन्द्र-कविता-कानन आदि आलोचनात्मक निबन्ध-संग्रह। राणाप्रताप, भीम, प्रह्लाद, ध्रुव, शकुन्तला आदि जीवन-चरित्र। महाभारत, श्री रामकृष्ण-रसनामृत  (४ भाग), स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण, देवी चौधरानी, आनन्दमठ, दुर्गेशनन्दिनी, युगलांगुलीय, वात्स्यायन-कामसूत्र तथा तुलसी रामायण की टीका व गोविन्ददास-पदावली (पद्य में) अनूदित ग्रंथ हैं।

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