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जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810

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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ


मनुष्यों की भीड़ से जाड़े की संध्या भी वहाँ गर्म हो रही थी। हम दोनों शरबत पीकर निशाना लगाने चले। राह में ही उससे पूछा, ”तुम्हारे घर में और कौन है?”

”मां और बाबूजी।”

”उन्होंने तुमको यहां आने के लिए मना नहीं किया?”

”बाबूजी जेल में हैं।”

”क्यों?”

”देश के लिए।” वह गर्व से बोला।

”और तुम्हारी माँ?”

”वह बीमार है।”

”और तुम तमाशा देख रहे हो?”

उसके मुँह पर तिरस्कार की हंसी फूट पड़ी। उसने कहा, ”तमाशा देखने नहीं, दिखाने निकला हूं। कुछ पैसे ले जाऊँगा, तो माँ को पथ्य दूँगा। मुझे शरबत न पिलाकर आपने मेरा खेल देखकर मुझे कुछ दे दिया होता, तो मुझे अधिक प्रसन्नता होती!”

मैं आश्चर्य से उस तेरह-चौदह वर्ष के लड़के को देखने लगा।

”हां, मैं सच कहता हूं बाबूजी! मां जी बीमार हैं, इसीलिए मैं नहीं गया।”

”कहां?”

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