धर्म एवं दर्शन >> काम कामरामकिंकर जी महाराज
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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन
यह प्रक्रिया उस पुरानी कथा का स्मरण दिलाती है और पूजा के मूल में जो 'अभिमान-त्याग' का मंत्र है उसे जाग्रत् करती है। वीरभद्र के द्वारा सिर काटे जाने से लगा कि भगवान् शिव नाराज हैं पर अहंकार-शून्य नया सिर प्रदान करना तो उनकी कृपा का प्रतीक है। क्योंकि भगवान् शंकर की पूजा का सही फल तो वस्तुत: 'अहंकार से मुक्ति' ही है और यह फल भगवान् शंकर की प्रसन्नता और कृपा से ही प्राप्त होता है। गणेशजी का प्रसंग भी बड़ा सांकेतिक है। गणेशजी का निर्माण पार्वतीजी ने अकेले ही किया था। इसलिए गणेशजी ने न पहचान पाने से, शंकरजी को भीतर पैठने से रोक दिया। भगवान् शंकर ने उनका सिर काट दिया। देवी पार्वती को जब यह ज्ञात हुआ तो वे विलाप करने लगीं और तब शंकरजी ने गणेशजी को हाथी का नया सिर प्रदान किया। भगवान् शंकर 'विश्वास' के देवता हैं और गणेश जी 'विवेक' के देवता हैं। विश्वास घर का स्वामी है और विवेक पहरेदार है। इसका अर्थ है कि जीवन में विवेक को पहरेदार होना चाहिये कि जिससे दुर्गुण-दुर्विचार रूपी चोर-डाकू हृदय के भीतर प्रविष्ट न हो सकें पर यदि 'विवेक' विश्वास को ही भीतर न बैठने दे, तब तो यह अभिमान की ही पराकाष्ठा होगी। इसलिए उनका सिर काटना पड़ा। आज जिन गणेशजी की पूजा हम सब करते हैं उनका सिर पुराना, अभिमान-युक्त न होकर, भगवान् शंकर के द्वारा दिया गया नया सिर है। मानो शंकरजी ने पार्वतीजी से कहा- देवि! आपने गणेशजी का निर्माण अकेले कर डाला इसलिए वह मुझे पहचान नहीं सका। अब उसका शरीर तो आपका ही दिया हुआ रहेगा पर सिर मैंने अपनी ओर से लगा दिया है जिससे एक सामंजस्य हो जायगा और वह हम दोनों के प्रतिनिधि के रूप में समादृत होगा। सचमुच, गणेशजी श्रद्धा का शरीर और विश्वास का सिर पाने के बाद जगत्पूज्य हो गये, प्रथम पूज्य हो गये। विवेक की यही सार्थकता है कि उसमें श्रद्धा और विश्वास दोनों ही हों।
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