धर्म एवं दर्शन >> काम कामरामकिंकर जी महाराज
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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन
अंगदजी का तात्पर्य था कि रावण! तुम्हारा कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि भगवान् शंकर तुम्हारे इष्ट हैं और जिनसे तुम युद्ध करने जा रहे हो वे श्रीराम साक्षात् भगवान् हैं और उनकी आराधना भगवान् शंकर भी करते हैं। अंगद जी रावण से कहते हैं कि-
ते नहिं सूर कहावहिं समुझि देखु मतिमंद।। 6/26
भगवान् राम से लड़ने के तुम्हारे संकल्प के पीछे तुम्हारी वीरता नहीं, मुझे तो तुम्हारी मूर्खता ही दिखायी दे रही है। इसका अर्थ है कि दीपक का प्रकाश तो बहुत बड़ा गुण है, पर आप उससे क्या लेते हैं यह अधिक महत्त्वपूर्ण है। सीताजी को 'दीपशिखा' कहने के पीछे गोस्वामीजी का यही संकेत है।
श्री सीताजी जनकपुर, अयोध्या तथा लंका तीनों ही स्थानों में दिखायी देती हैं। जनकपुर और अयोध्या में वे ऐसी दीपशिखा की तरह हैं कि जिनसे प्रकाश फैलता है पर लंका में उनका दूसरा पक्ष दिखायी देता है। लंका में तो उनकी दाहकता का ही गुण प्रकट होता है क्योंकि जब वे लंका में आती हैं तो लंका जलकर खाक हो जाती है। जनकपुर में भगवान् राम उन्हें देखकर यही तो कहते हैं कि कैसा दिव्य प्रकाश है इनका! -
और रावण की श्रीसीताजी के प्रति जो दृष्टि है, गोस्वामीजी उससे हमें सावधान करते हुए कहते हैं कि-
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