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काम

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9811

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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन


सौन्दर्य तो 'दीपशिखा' की भाँति है। व्यक्ति उसे देखकर यदि 'पतंगा' बनेगा तो जलकर मर जायगा और यदि इसे प्रकाश के स्रोत के रूप में ग्रहण करेगा तो धन्य हो जायगा। भगवान् राम ने श्रीसीताजी का परिचय जो यह कहकर दिया कि इनके लिये यज्ञ हो रहा है, यह प्रकाश के ही पक्ष का द्योतक है। रावण, बाणासुर सहित और भी बहुत से राजा श्रीसीताजी को पाने के लिये आये हुए हैं, पर वे स्वयंवर को यज्ञ समझकर नहीं, जुआ समझकर आये हुए हैं। वे सोचते हैं - दाँव खेलो! शायद हमसे ही धनुष टूट जाय। शायद हमारे गले में जयमाला पड़ जाय! पर भगवान! राम ऐसा नहीं सोचते। वे कहते हैं-

तात जनक तनया यह सोई।
धनुष जग्य जेहि कारन होई।। 1/230/1


'जुए' में पाने की वृत्ति और 'यज्ञ' में देने की वृत्ति है। आहुति देना यज्ञ है।

भगवान् राम सीताजी के सौन्दर्य की सराहना करते हुए कहते हैं कि -

जासु विलोकि अलौकिक सोभा।
सहज पुनीत मोर प्ल सोभा।। 1/230/3


मेरे मन में आजतक विकार का उदय नहीं हुआ पर आज क्षोभ उत्पन्न हो गया। इस प्रकार भगवान् राम यदि एक ओर काम की वृत्ति और उसके प्रभाव को स्वीकार करने में किसी संकोच का अनुभव नहीं करते तो दूसरी ओर साथ ही वे यह भी कहते हैं कि श्रीसीताजी यज्ञमयी हैं, प्रकाशमयी हैं।

उधर, इस बीच श्रीसीताजी ने भी भगवान् राम को देख लिया। वे प्रभु को अपलक देख रही हैं। अब परिचय भी तो होना चाहिये न!

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