धर्म एवं दर्शन >> काम कामरामकिंकर जी महाराज
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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन
एक बार मैं एक विवाह में गया। गृहस्वामी कथाप्रेमी थे। उन्होंने कहा कि थोड़ी कथा हो जाय। मैंने कहा- ''भाई! विवाह में गाली गायी जाती है, कथा नहीं की जाती।'' श्रृंगार के प्रसंग में श्रृंगार ही रहे तो अच्छा लगता है। कथा महत्त्वपूर्ण है पर विवाह के तुरंत बाद कथाप्रेमी पति यदि पत्नी से यह कहे कि 'कथा सुनो' तो यह बात बहुत बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं कही जा सकती। 'मानस' में भगवान् शंकर के विवाह का वर्णन आता है। विवाह के पश्चात् भगवान् शंकर जब पार्वतीजी के साथ कैलास पर्वत पर आये तो गोस्वामीजी ने यह नहीं लिखा कि वे पार्वतीजी को लगे रामकथा सुनाने यद्यपि भगवान् शंकर रामकथा के रचयिता हैं और सर्वश्रेष्ठ वक्ता भी हैं, पर वे ऐसा नहीं करते। गोस्वामीजी उस प्रसंग का वर्णन करते हैं तो यही कहते हैं कि-
सुर सब निज निज धाम सिधाए।। 1/102/3
और तब वहाँ कथा नहीं होती।
''तब क्या होता है?'' गोस्वामीजी कहते हैं कि-
गनन्ह समेत बसहिं कैलासा।।
हर गिरजा बिहार नित नयऊ।
एहि विधि बिपुल काल चलि गयऊ।। 1/102/5,6
भगवान् शंकर ने बहुत दिनों तक श्रृंगार की आनंदमयी लीला पार्वतीजी के साथ संपन्न की। इसके बाद स्वामी कार्तिकेय का जन्म हुआ, जिन्होंने तारकासुर का वध किया। यह वही तारकासुर दैत्य है जिसकी यह धारणा थी कि 'शंकरजी विवाह नहीं करेंगे तो उनको पुत्र नहीं होगा और मैं मरूँगा नहीं।' पर वह मारा गया। बाद में कथा की भी बात आयी। इस तरह सभी बातें उचित समय और उपयुक्त स्थान पर महत्त्वपूर्ण और शोभनीय होती हैं।
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