धर्म एवं दर्शन >> काम कामरामकिंकर जी महाराज
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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन
गोस्वामीजी 'काम-अश्व' के रूप, गुण, गति और बल आदि के वर्णन के साथ-साथ यह कहते हैं कि मणि एवं मोती से जड़ी हुई एक सुंदर लगाम भी है जो भगवान् राम के हाथों में है। इसका अर्थ है कि 'काम' का नियंत्रण भगवान् राम के हाथ में है और वे जैसा चाहते हैं काम को वैसा ही नचाते हैं।
गोस्वामीजी ने इस दृश्य के बारे में एक और अद्भुत बात कही। वे कहते हैं कि 'काम घोड़े का रूप बनाकर आया है और नाच रहा है' ऐसा हमें दिखायी देता है, पर काम भले ही घोड़े के रूप में दिखायी दे रहा हो, वस्तुत: वह भगवान् राम की श्याम छवि को देखकर मानो 'मोर' बन कर नाच रहा हो।
इसका संकेत यही है कि 'काम' के बिना सृष्टि चलेगी नहीं और 'काम' तो आनंद की वह अभिव्यक्ति है कि जिससे बढ़कर अन्य कोई उपमान न तो रामायण में मिलता है और न ही उपनिषद् में। इसीलिए उपनिषद् में बह्मसुख को समझाने के लिये जो उपमा दी गयी उसमें कहा गया कि-
यथा पुरुष: जायया सपरिष्वक्तः वाह्याभ्यन्तरं न किंचन्वेद।
'जैसे पति-पत्नी मिलन के दिव्य रस में सभी बाह्य वस्तुओं को भूल जाते हैं, उसी प्रकार से समाधिकाल में ब्रह्म से एकत्व की अनुभूति करने वाला व्यक्ति ब्रह्मानंद में डूब जाता है।'
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