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धर्म एवं दर्शन >> काम

काम

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9811

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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन


काम ने सबसे पहले श्रुति का ही सेतु तोड़ दिया। फिर-

ब्रह्मचर्य ब्रत संजम नाना।
धीरज धरम ग्यान बिग्याना।।
सदाचार जप जोग विरागा।
समय विवेक कटकु सबु भागा।। 1/83/7,8


और स्थिति यहाँ तक हो गयी कि जो वेदान्ती संसार को ब्रह्ममय देखते थे, वे नारीमय देखने लगे-

देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहे। 1/84/छं


जिन योगियों ने समझ लिया था कि हमने मन को मार डाला है, उन्हें दिखायी पड़ा है कि --

जागइ मनोभव मुएहुँ मन, 1/85/छं


उनके मन में काम जाग्रत् हो गया है। इस प्रकार कामदेव ने केवल अपना चमत्कार दिखाने के लिये समस्त संसार में कामभाव जाग्रत् कर दिया। काम इसी रूप में जब वह किसी सीमा या मर्यादा का ध्यान न रखकर सब कुछ नष्ट करने पर उतावला हो जाता है, तब अनर्थकारी, अकल्याणकारी और निंदनीय बन जाता है।

गोस्वामीजी से पूछा गया- 'महाराज! उस समय कोई तो बचा होगा? गोस्वामीजी ने कहा-

धरी न काहू धीर सब के मन मनसिज हरे।
जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महुँ।। 1/85


''भगवान् ने जिसे बचा लिया वे ही केवल बच पाये, अन्य सब के सब-के-सब काममय हो गये।''

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