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धर्म एवं दर्शन >> कृपा

कृपा

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9812

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मानसिक गुण - कृपा पर महाराज जी के प्रवचन


अपने आप को बड़ा पुरुषार्थी समझते हैं और सोचते हैं कि हम अपने बल से ही सब कुछ कर लेंगे, हमें किसी प्रकार के सहारे की आवश्यकता नहीं है। कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो बेखबर दिखायी देते हैं। पर उनकी यह स्थिति एक उन्मत्त शराबी की तरह ही होती है जिसे सुरापान के बाद अपनी वास्तविकता का भान नहीं रहता है-

कै कलिकाल कठिन नहीं सूझत मोह मार मद छाके।


ऐसे व्यक्ति मोह, अभिमान आदि की शराब पीकर अपनी सुध-बुध खो चुके होते हैं। इस संदर्भ में एक प्रसिद्ध गाथा आती है जिसे आप लोगों ने सुनी भी होगी। एक व्यक्ति शराब पीकर मस्त चला जा रहा था। सामने से उस देश का राजा हाथी पर सवार होकर, सेवक-सैनिकों के साथ, आ रहा था। शराबी ने हाथीवाले को रोक लिया और कहने लगा - अरे हाथीवाले! बोल तू हाथी कितने में बेचेगा? सुनकर राजा के सैनिक उसे मारने के लिये दौड़े, क्योंकि उन्हें लगा कि यह तो हमारे राजा का अपमान कर रहा है। पर राजा ने उन्हें रोकते हुए कहा- इसे मारो मत! बस, जाकर देख आओ कि इसका घर कहाँ पर है। दूसरे दिन सभा में बैठने के बाद राजा ने आज्ञा दी कि उस व्यक्ति को बुला लाओ जो कल रात हाथी खरीदने की बात कर रहा था। वह व्यक्ति सामने लाया गया। तब तक उसका नशा उतर गया था। राजा ने मुस्कराते हुए उससे पूछा- तुम रात में हाथी खरीदने की बात कर रहे थे, अब सौदा हो जाय! बोलो, हाथी कितने में लोगे? उस व्यक्ति ने हाथ जोड़ते हुए कहा - महाराज! क्षमा कीजिये, हाथी खरीदने वाला तो रात में ही चला गया। मैं तो एक गरीब आदमी हूँ मुझमें यह साहस कहाँ कि मैं हाथी खरीद सकूँ? गोस्वामीजी भी यही कहते हैं कि कई लोग अभिमान के नशे में इतने मत्त होते हैं कि यह झूठा दावा करते रहते हैं कि हममें कोई विकार है ही नहीं, हम सब दोषों से ऊपर हैं।

इसका संकेत यही है कि विश्वामित्र जैसे त्यागी, तपस्वी और पुरुषार्थी महात्मा बार-बार यज्ञ करते हैं, पर वह अधूरा रह जाता है, वे सफल नहीं हो पाते। हम-आप भी अच्छा कार्य करने का संकल्प लेते

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