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मानसिक गुण - कृपा पर महाराज जी के प्रवचन
अब मैं कृपा की बात क्या कहूँ? मेरे लिये यह केवल भाषण का विषय नहीं है। मैं तो जीवन में प्रतिक्षण प्रभु की कृपा का ही अनुभव करता रहता हूँ। जो कुछ लिखा या कहा जाता है, भले ही वह मेरे द्वारा होता हुआ दिखायी देता हो, और लोगों को लगता हो कि वह मेरे किसी कठिन साधना या चिन्तन का फल है, पर मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि वह तो -
केवल कृपा तुम्हारिहि कृपानंद संदोह। 7/36
केवल प्रभु की कृपा ही है। रायपुर में कई संत एकत्रित हुए थे। चर्चा चलने लगी कि भगवान् ने किसकी कब परीक्षा ली। सबने अपना-अपना संस्मरण सुनाया। वहाँ के स्वामीजी महाराज ने मुझसे पूछ दिया कि आपकी कभी परीक्षा हुई कि नहीं? बार-बार हुई।
कब पास हुए कब फेल हुए? मैंने कहा- मैं तो कभी फेल नहीं हुआ। बड़ा आश्चर्य है!
मैंने कहा- स्वामीजी अपनी योग्यता से तो मैं कभी पास ही नहीं हुआ, जीवन भर कृपांक से ही पास हुआ हूँ। आप सब जानते ही हैं कि परीक्षा में जब छात्र बहुत थोड़े से अंकों से अनुत्तीर्ण हो रहा हो, तो उसके थोड़े से अंक बढ़ाकर, उसे उत्तीर्ण कर दिया जाता है। मैं भी जीवनभर भगवत्कृपा के द्वारा ही सफल होता रहा हूँ। प्रभु की कृपा का जीवन में अनुभव हो जाना यह भी प्रभु की कृपा का ही फल है और प्रभुकी कृपा की विशेषता है कि वह कभी समाप्त नहीं होती।
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