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मानसिक गुण - कृपा पर महाराज जी के प्रवचन
आज हम कृपा के बारे में कुछ चर्चा करेंगे। आज, मुझसे परिचित एक गायक महोदय ने प्रश्न किया कि कृपा के संदर्भ में प्रारब्ध और पुरुषार्थ का क्या स्थान है? और क्या कृपा से प्रारब्ध को टाला जा सकता है? कहा जा सकता है कि पुरुषार्थ और सद्गुणों का व्यक्ति के जीवन में बड़ा महत्त्व है।
एक बार किसी श्रोता ने मुझसे पूछा कि वाल्मीकि रामायण को पढ़ने से लगता है कि राम मर्यादापुरुषोत्तम हैं, वे न्याय और मर्यादा का पालन करते हैं। पर मानस को पढ़ने से ऐसा लगता है कि उसमें गोस्वामीजी भगवान् राम के इन गुणों पर जोर न देकर, बार-बार यही कहते हैं कि श्रीराम तो बड़े दयालु हैं। तो, आपकी दृष्टि में श्रीराम मर्यादापुरुषोत्तम हैं या कृपालु हैं? मैंने कहा कि वे तो दोनों ही हैं। एक न्यायाधीश के संबंध में यदि हम वकील, अपराधी तथा प्रार्थी से प्रश्न करें तो जो उत्तर मिलेगा और उस न्यायाधीश के बारे में न्यायाधीश के नन्हे-से बालक से मिले उत्तर में भिन्नता तो होगी ही! न्यायाधीश की प्रशंसा करने वाला तो यही कहेगा कि वे बड़े निष्पक्ष हैं, बड़ा संतुलित निर्णय देते हैं, बड़ी कठोरता से न्याय करते हैं और कानून के बड़े ज्ञाता हैं। किसी न्यायाधीश के विषय में ऐसा भी सुनने को मिल सकता है कि वे कानून को जानते ही नहीं। पर यदि न्यायाधीश के छोटे से बालक से यह पूछा जाय कि तुम्हारे पिताजी कैसे हैं? तो वह नन्हा बालक क्या यह कहेगा कि वे कानून के पंडित हैं, या वे बड़े निष्पक्ष और कठोर न्याय करने वाले हैं? वह यही कहेगा कि ये तो मुझे प्यार करते हैं। उसके लिये तो वे पिता हैं। न्यायाधीश महोदय न्यायालय से घर आये। बच्चे ने ज्योंही देखा, तो वह उनकी गोद में कूद पड़ा। वह उन्हें न्यायाधीश थोड़े मानता है! वे बस पिता हैं। वह तो उनकी कान पकड़ सकता है और नाक हिला सकता है। अब क्या न्यायाधीश महोदय उसे अपनी मानहानि का दण्ड देंगे? अब प्रश्न उठता है कि फिर सत्य क्या है? तो, इसका उत्तर इस बात पर निर्भर है कि आप न्यायालय में खड़े है या घर मंा बैठे हैं?
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