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धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी

मानस और भागवत में पक्षी

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :42
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9816

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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग


चातक, कोकिल, कीर और चकोर भगवान् को देखकर गाने लगे और मोर नाचने लगा। किसी ने गोस्वामीजी से कहा कि पक्षी एकत्र तो हुए, लेकिन ये सब तो बढ़िया से बढ़िया पक्षी थे। उन्होंने कहा कि नहीं भई! केवल बढ़िया पक्षी ही नहीं थे, जब अरण्यकाण्ड में आया कि गीध ने भगवान् को पिता बना लिया और कौए को अपना कथावाचक बना दिया तो सारे के सारे पक्षी आ गये। हंस से ले करके चातक, कोकिल, कीर, चकोर, मोर, गीध और कौआ इनकी सबकी समष्टि भगवान् के चरित्र में आवे। इसका तात्पर्य यह है कि भगवान् की कथा में सबका सदुपयोग है। कौआ भी अपने को धन्य बनाये, गीध भी अपने को धन्य बनाये। चातक, कोकिल, कीर, चकोर, मोर ये सबके सब अपने आपको धन्य बनायें। यह भगवान् राम की मंगलमयी कथा है।

‘श्रीमद्भागवत’ की जो कथा है, उसे शुक सुनायें अर्थात् तोते की वाणी से भगवान् की कथा सुनें या अगर शुकदेवजी परमहंस है तो हंस की वाणी से सुनें। या रामकथा के रूप में काकभुशुण्डि यानी कौआ कथा सुनावे और बगुले के रूप में कथा सुनें। यह भगवान् की जो कथा है, इसकी विलक्षणता यह है कि समस्त पक्षियों को अपने सदुपयोग की प्रेरणा देती है। आप एक सूत्र देखें। गीध और काकभुशुण्डि के सिद्धान्तों में भी भेद था और इन दोनों पक्षियों में भी भेद था। जीना अच्छा है कि मरना? इस सम्बन्ध में भी इन दोनों पक्षियों की अलग-अलग मान्यता थी। भगवान् राम ने गीधराज से कहा कि मैं चाहता हूँ कि आप जीवित रहें और मैं आपकी सेवा करूँ। अगर आप बहुत दिनों तक मेरी सेवा लें तो मुझे सन्तोष होगा, पर गीधराज ने स्वीकार नहीं किया और काकभुशुण्डि से भगवान् ने पूछा कि तुम जीवित रहना चाहते हो कि शरीर का विसर्जन करके मुक्ति पाना चाहते हो? उन्होंने जीवित रहना पसन्द किया। बड़ी अनोखी बात है दोनों पक्षियों ने तो बिल्कुल अलग-अलग बात भगवान् से कही। गीधराज ने कहा –

जाकर  नाम मरत मुख आवा।
अधमउ मुकुत होइ श्रुति गावा।।
सो  मम  लोचन गोचर  आगें।
राखौं  देह  नाथ  केहि  खाँगें।। 3/30/6-7

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