धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी मानस और भागवत में पक्षीरामकिंकर जी महाराज
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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग
और बड़ी मीठी बात आयी कि भगवान् की कथा अगर कोई बड़े मधुर कण्ठ से सुनावें, सांकेतिक भाषा में कहे तो यह कह सकते थे कि रामकथा की वक्ता कोयल है, यदि कोयल कथा कहती तो यह पता लगाना कठिन था कि कोयल की वाणी में आनन्द आ रहा है कि भगवान् की कथा में आनन्द आ रहा है? कोयल की आवाज में तो बड़ी मधुरता होती है, परन्तु रामकथा की मधुरता कितनी है? शंकरजी से पार्वतीजी ने पूछा कि जब कौआ भगवान् का गुण गाता होगा तो वह अपने स्वर में ही गाता होगा! कौआ अपनी वाणी में ही बोलेगा। शंकरजी ने हँसकर कहा कि पार्वती! यही तो विलक्षणता है। अगर कोयल भगवान् की कथा सुनावे तो भगवान् की कथा की महिमा प्रकट नहीं होगी, पर भगवान् की कथा इतनी मधुर है कि उसे जब कौआ सुनाता है, तो कौए का कण्ठ भी मधुर लगता है, जैसाकि गोस्वामीजी मे लिखा –
मधुर बचन तब बोलेउ कागा। 7//62/8
नहीं, नहीं, कर्कश नहीं, कर्कशता का क्या काम है? जहाँ भगवान् की कथा है, वहीं तो सारी मधुरता है और अब काकभुशुण्डि के स्वर में इतनी मधुरता है कि सारे पक्षी मुग्ध हो रहे हैं। मानो ‘रामायण’ का मधुर संकेत यह है कि अगर आप अलग-अलग पक्ष लीजिएगा, ज्ञान का, भक्ति का, कर्म का या समाजशास्त्र का या नास्तिकता का तो इन सबमें आपको संघर्ष मिलेगा। प्रत्येक पक्ष में झगड़े की प्रतीति होगी और विवाद बढ़ेगा, लेकिन यह भगवान् की मंगलमयी कथा इतनी अनोखी कथा है कि इसमें सारे पक्षी एकत्र हो जाते हैं। भगवान् पुष्पवाटिका में गये तो –
चातक कोकिल कीर चकोरा।
कूजत बिहग नटत कल मोरा।। 1/226/6
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