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धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी

मानस और भागवत में पक्षी

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :42
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9816

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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग


शंकर को अद्वैत तत्त्व के श्रेष्ठतम आचार्य हैं, वेदान्त के ज्ञान के महत्तम आचार्य साक्षात् भगवान् शिव! शंकर ने कहा कि पार्वती मैं जानता हूँ कि यदि मैं जाता तो काकभुशुण्डि मुझे देखकर खड़े हो जाते और मुझसे यही कहते कि अब आप आसन पर बैठ जाइए और अब कथा सुनाइए और मैं सुनूँगा, लेकिन मैंने यह भूल नहीं की। मैंने तुरन्त अपना रूप हंस का बनाया और –

तब कछु काल मराल तनु धरि तहँ कीन्ह निवास।
सादर  सुनि  रघुपति  गुन  पुनि आयउँ कैलास।। 7/57

मैं भी हंस बनकर वहाँ बैठ गया। शंकरजी से पूछा गया कि महाराज! आप कौए से क्यों सुन रहे हैं? कौए के मुँह से सुनते हुए क्या आपको यह विचित्र नहीं लग रहा था, आपको यह अद्भुत बात नहीं लग रही थी। शंकरजी ने कहा कि पार्वती! भगवान् की कथा की महिमा कौए के मुख से सुनने में अधिक आनन्द आया। भगवान् की महिमा तो प्रत्यक्ष केवल कथा में ही नहीं, सर्वत्र दिखायी दे रही है। फिर रही सही कमी तब पूरी हो गया कि जब गरुड़जी कथा सुनने आ गये।

काकभुशुण्डि ने गरुड़जी से कहा कि भगवान् ने आपके अन्दर भ्रम पैदा कर दिया और यहाँ पर भेज दिया, यह आपके भ्रम के कारण थोड़े ही हुआ है! भगवान् तो अपने भक्त की दिव्य महिमा बढ़ाना चाहते थे और उसकी महिमा बढ़ाने के लिए ही भगवान् ने सोचा कि और सारे पक्षी तो कथा सुनते ही हैं, पर यदि पक्षियों का राजा भी नीचे बैठकर कथा सुने, इससे बढ़कर भक्ति की महिमा का रूप क्या होगा? इसलिए –

पठइ मोह मिस खगपति तोही।
रघुपति  दीन्हि  बड़ाई  मोहीं।। 7/69/4

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