धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी मानस और भागवत में पक्षीरामकिंकर जी महाराज
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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग
तेरे अन्तःकरण में बड़ा दुष्ट पक्षपात है। पक्षपात भी है तो ठीक पक्षपात नहीं है, अब तू जा करके पक्षियों में भी जो अति निकृष्ट पक्षी है, चाण्डाल पक्षी है कौआ, वह कौआ हो जा। भुशुण्डिजी हो गये कौआ, लेकिन बड़ी उल्टी बात हो गई। लोमशजी कह रहे थे कि तुम साक्षात् ब्रह्म हो और भुशुण्डि शर्मा कह रहे थे कि मैं तो जीव हूँ, दास हूँ। व्यंग्य यह है कि उनको ब्रह्म बनाते-बनाते कौआ बना दिया। इससे अच्छा था कि पहले उनको दास ही बन जाने देते! भक्त ही बन जाने देते! लोमशजी विचारक थे। जब उन्होंने देखा कि शाप प्राप्त कर कौआ बन जाने के पश्चात् भी उनकी आकृति में कोई रंचमात्र भी चिन्ता नहीं दिखायी पड़ी, कोई भय नहीं दिखायी पड़ी –
नहिं कछु भय न दीनता आई। 7/111/16
इतना ही नहीं! मुनि के चरणों में काकभुशुण्डि ने प्रणाम किया और उड़कर जाने लगे। बस! यहीं पर जो विवाद था, वह संवाद में बदल गया। लोमशजी को लगा कि अरे! मैं जो अभेद बुद्धि की बात भाषण में कह रहा हूँ, परन्तु मेरे व्यवहार में तो भेद आ गया और यह जो बात तो भेद की कर रहा है, पर इसके व्यवहार में अभेद है तो लगता है कि मुझसे अन्याय हो गया। बड़े आदर के साथ पास बुला लिया और फिर हंस ने कौए को उपदेश दिया, जो दूरी दिखाई दे रही थी, वह मिट गई। अब हंस उपदेश दे रहा है और कौआ सुन रहा है। परिणाम यह हुआ कि कौए ने हंस से सब कुछ पा लिया। लोमशजी ने भक्ति का एवं ज्ञान का सारा रहस्य बता दिया और काकभुशुण्डि वह रहस्य प्राप्त करके धन्य हो गये, लेकिन भगवान् ने बड़ा कौतुक किया।
भले ही दोनों पक्षी हों, लेकिन हंस तो श्रेष्ठ ही रहेगा और कौआ निकृष्ट ही रहेगा। हंस सुनायेंगे और कौए सुनेंगे, परंतु शंकरजी ने कहा कि पार्वती! जब मैं एक बार घूमते हुए सुमेरु पर्वत पर गया तो मैंने वहाँ एक बड़ा अनोखा दृश्य देखा कि सुमेरु पर्वत पर एक वट का वृक्ष है और उसकी छाया में बैठकर कौआ कथा कह रहा है, पर सुन कौए रहे थे? कौए ही सुन रहे होंगे। बोले कि नहीं पार्वती! मैंने बड़ा विचित्र दृश्य देखा कि कथा कह रहा है कौआ और सुन कौन रहे हैं? –
सुनहिं सकल मति बिमल मराला। 7/56/9
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