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धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी

मानस और भागवत में पक्षी

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :42
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9816

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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग


इसका अभिप्राय है कि जितनी मान्यताएँ हैं, वे सब किसी न किसी काल में उपयोगी हैं और जो एक मान्यता को मानकर चल रहा है, पहले उसकी मान्यता के अनुकूल उसके मनोभावों की पुष्टि की जाय और इसके पश्चात् फिर अगर वह आगे बढ़ना चाहे तो उसको आगे बढ़ने की प्रेरणा दी जाय। लोमशजी के सन्दर्भ में कठिनाई यह हुई कि उन्होंने भुशुण्डिजी के संस्कारों पर दृष्टि नहीं डाली और बिना उनके संस्कारों पर दृष्टि डाले उनको तत्त्वज्ञान देना चाहिए, ऐसा विचार किया। तब भुशुण्डि शर्मा ने अपनी असमर्थता बिल्कुल स्पष्ट कर दी। लोमशजी ने पूछा कि तुम्हें मेरा उपदेश ठीक लगा कि नहीं? उन्होंने उत्तर दिया कि महाराज! मैं तो कहूँगा कि-

राम भगति जल मम मन मीना।
किमि  बिलगाइ  मुनीस प्रबीना।। 7/110/9

भगवान् की भक्ति जल है और मेरा मन मछली है। अगर कोई भाषण देकर मछली को समझाये कि कहाँ तुम जल में पड़ी रहती हो, जरा निकलकर मुम्बई की सड़कों की सैर करो, मुम्बई में कितने बड़े-बड़े भवन हैं! बात तो आपकी बिल्कुल ठीक है। समुद्र में उसको वह सब नहीं मिलता जो मुम्बई के पूरे विस्तार में है, लेकिन मछली की समस्या यह है कि यदि वह पानी से निकले तो उसके प्राण ही चले जायेंगे। इसलिए आप यदि मुझसे प्रेम करते हैं तो मुझे जल में ही निरन्तर बने रहने दीजिए। भुशुण्डिजी ने कहा तो लोमशजी को क्रोध आ गया। हंस को क्रोध आ गया। यह बड़ी विचित्र बात हुई। क्रोधित होकर उन्होंने कहा–

सठ स्वच्छ तव हृदयँ बिसाला।
सपदि   होहि   पच्छी  चण्डाला।। 7/111/15

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