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धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी

मानस और भागवत में पक्षी

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :42
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9816

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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग


यह मेरा अत्यन्त पुण्य है, जो आपका दर्शन हुआ और आपके सत्संग से मुझे बड़ा लाभ हुआ। अब अगर यों पढ़े तो पढ़कर हँसी आती है। हनुमान् जी ने कोई भाषण नहीं दिया, कोई कथा नहीं सुनायी, कोई चर्चा नहीं की, केवल मुक्का मार दिया। मुक्केबाजी भी कोई सत्संग है क्या? हाँ भई! सच्चे अर्थों में सत्संग का यही तो फल है जो लंकिनी के जीवन में हुआ। जब सत्संग में आने पर कुछ वैराग्य आ जाय, जब हमारे राग का रक्त कुछ कम हो जाय तो सत्संग की सार्थकता है, संसार से वैराग्य का अर्थ केवल वैराग्य ही नहीं है। इसलिए ‘रामायण’ में कहा गया कि जो विरागी होगा, वह संसार से विरागी होगा, परन्तु इससे उसका जो भगवान् से राग है वह तो और बढ़ गया। अभी जो अनुराग था, वह तो चारों ओर फैला हुआ था, अब क्या हुआ? –

जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी। 1/186 छंद

भगवान् ने जो लक्ष्मण से कहा, उसका तात्पर्य यह है कि लक्ष्मण! तुम वैराग्य की सृष्टि करो, परन्तु उस वैराग्य का परिणाम अनुराग में होना चाहिए और इससे सुग्रीव धन्य हो जायेगा और सचमुच लक्ष्मणजी और हनुमान् जी ने सुग्रीव के अन्तःकरण में वैराग्य की सृष्टि की। पहले तो भगवान् राम ने पत्नी से मिलाया, परिवार से मिलाया, सम्पत्ति दिलायी और अब जो सुग्रीव भगवान् राम के पास आया तो सब कुछ छोड़ करके आया। इसका अभिप्राय है कि अब वैराग्य के पश्चात् पुनः भगवान् के पास आते हैं और तब भगवान् उनको किस काम में लगाते हैं? लंका के राक्षसों का वध करने में।

भगवान् ने सुग्रीव के जीवन में क्रमशः पहले उनके अन्तःकरण की कामना की पूर्ति की, फिर इसके पश्चात् उनके अन्तःकरण में वैराग्य की सृष्टि की, इसके पश्चात् उनके अन्तःकरण में ज्ञान की सृष्टि की और फिर ज्ञान का सदुपयोग करके मोह, अभिमान आदि के विनाश में उनको लगाया और फिर सुग्रीव के जीवन में पतन की आशंका नहीं रही। इसका अभिप्राय यह है कि यह जो क्रमिक साधना का सोपान है या क्रमिक साधना की पद्धति है, उसका तत्त्व यह है कि प्रारम्भ में ही यदि व्यक्ति इसमें उलझ जायेगा कि परम सत्य क्या है? तो झगड़ा हुए बिना नहीं रहेगा। अगर हम अपना सत्य दूसरे पर लादने की चेष्टा करेंगे तो संघर्ष होगा। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि पक्ष का सदुपयोग समन्वय में हो।

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