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धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी

मानस और भागवत में पक्षी

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :42
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9816

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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग


वह वैद्य आकर यह देखे कि कहीं भगवान् से प्रेम तो नहीं घट रहा है? यदि वैद्य आकर कोई ऐसी दवा दे दे कि जिससे भगवान् के प्रति प्रेम बढ़ जाय तो ठीक है और सब घटे, पर भगवान् से प्रेम बढ़े। अतः सीताजी के चरणों का रक्त न बहे। हनुमान् जी तो वैराग्य हैं। लंकिनी को मुक्का मारा तो कितना अच्छा हुआ! लंकिनी के मुँह से रक्त गिरा तो क्या विचित्र घटना घटी! यदि किसी के मुँह से अधिक रक्त गिर जाय तो उसको तो लिटा दिया जायेगा, वह उठ भी नहीं सकेगा, लेकिन यहाँ उल्टी बात हो गई, किसी ने कहा कि हनुमान् जी जैसे सन्त ने यह क्या किया कि बेचारी एक स्त्री को इतनी जोर से मार दिया कि उसके मुँह से इतना रक्त निकल गया! यह क्या किया? गोस्वामीजी ने कहा कि जरा परिणाम तो देखिये कि क्या हुआ –

पुनि संभारि उठी सो लंका। 5/3/4

तुरन्त लंकिनी उठकर खड़ी गो गयी और हाथ जोड़कर हनुमान् जी से कहने लगी कि –

तात मोर अति पुन्य बहूता। 5/3/8

मेरा बहुत पुण्य है –

तात  स्वर्ग अपबर्ग  सुख धरिअ तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि तो सुख लव सतसंग।। 5/5

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