धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी मानस और भागवत में पक्षीरामकिंकर जी महाराज
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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग
बड़ी विचित्र बात है कि जिसका इतना रक्त निकला गया, वह लंकिनी अन्त में बड़ी प्रसन्न हुई। तो भई! रक्त निकलना अच्छा है कि रक्त की रक्षा करना अच्छा है? रक्त का अर्थ है राग। जिसमें राग न हो वह विरक्त है, तो सीताजी के चरणों में रक्त न बहे, इसका अभिप्राय क्या है? सीताजी मूर्तिमती भक्ति देवी हैं और उनका अनुराग भगवान् से जुड़ा हुआ है और एक बूँद भी अनुराग भगवान् से कम न हो जाय, यह असह्य है। उस रक्त की (प्रेम की) एक बूँद भी नहीं जानी चाहिए। गोस्वामीजी जब बूढ़े हो गये तो आँख से कम दिखायी देने लगा, कान से कम सुनायी देने लगा, तब लोगों को चिन्ता हुई कि किसी वैद्य को बुलाइए? दवा दें, जिससे आपकी शक्ति बढ़े। गोस्वामीजी से प्रस्ताव किया गया तो कहा कि मैं भी वैद्य बुलाना चाहता हूँ तो पूछा कि महाराज! किस रोग की दवा आप विशेष रूप से करना चाहेंगे? तब उन्होंने कहा कि भई! मैं तो एक ही रोग की दवा करना चाहूँगा और कोई चिन्ता नहीं है। उन्होंने कहा कि –
श्रवन घटहुँ पुनि दृग घटहुँ घटउ सकल बल देह।
कान से कम सुनायी देता है तो और कम सुनायी दे, संसार की बातें नहीं सुनायी दें तो और अच्छा है और नेत्र यदि घटे तो संसार के दृश्य प्रपंच दिखायी देने बन्द हो गये तो भी कोई चिन्ता की बात नहीं और शरीर का सारा बल घट जाय और निर्बलता उदित हुई –
निर्बल के बल राम।
हो गये। इसलिए इन तीनों के घटने से कोई चिन्ता नहीं। पूछा गया कि फिर वैद्य आकर किस रोग की दवा करेगा? क्या जाँच करेगा? कहा कि ऐसे वैद्य को बुलाओ जो आए और जाँच करके देखे –
श्रवन घटहुँ पुनि दृग घटहुँ घटउ सकल बल देह।
इते घटें घटिहै कहा जौं न घटै हरिनेह।।
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