धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी मानस और भागवत में पक्षीरामकिंकर जी महाराज
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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग
वस्तुतः भगवान् राम भी लक्ष्मणजी से यही कहते हैं कि तुम जा करके सुग्रीव के अन्तःकरण में भय की सृष्टि करो। फिर वैराग्य होगा। जब लक्ष्मणजी चलने लगे तो तुरन्त उनका हाथ पकड़कर भगवान् राम ने कहा कि तुम यह याद रखना कि वह डरपोक तो बहुत है, पर भगोड़ा भी है। ऐसा न डराना कि जिससे वह भाग खड़ा हो –
तब अनुजहि समुझावा रघुपति करुना सींव।
भय देखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव।। 4/18
भगवान् का अभिप्राय क्या है? विषयों की ओर से भागने का उद्देश्य है भगवान् की ओर जाना। संसार से वैराग्य का अभिप्राय केवल वैराग्य नहीं है, संसार से वैराग्य होने के पश्चात् –
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा।
संसार से वैराग्य करने में प्रश्न है कि जो अन्तःकरण का अनुराग है वह कहीं जायेगा कि सुरक्षित रहेगा। इसके लिए ‘रामायण’ में दो पात्रों के द्वारा दो संकेत आते हैं। एक का रक्त गिरना बहुत बुरा और दूसरे का रक्त गिरना बड़ा आवश्यक है। एक पात्र हैं जनकनन्दिनी सीता और दूसरी पात्र हैं लंकिनी। श्रीसीताजी के चरणों में जयन्त ने चोंच का प्रहार कर दिया और सीताजी के चरणों में बहुत थोड़ा रक्त निकला, लेकिन भगवान् को वह दृश्य असह्य हो गया और जयन्त के पीछे भगवान् राम ने अपना बाण लगा दिया। मानो भगवान् व्याकुल हो जाते हैं कि जानकीजी के शरीर से एक बूँद रक्त भी नहीं निकलना चाहिए। दूसरी ओर हनुमान् जी जब लंका के भीतर घुसने लगे और जब लंकिनी ने चोर कहकर उनको रोका तो हनुमान् जी ने अपना विशाल रूप प्रकट किया और लंकिनी को कसकर एक घूँसे का प्रहार किया, जिससे वह मुँह के बल गिर पड़ी और उसके मुख से एक-दो बूँद नहीं रक्त की धारा बह निकली, वह रुधिर की उल्टी करने लगी –
मुठिका एक महाकपि हनी।
रुधिर बमत धरनीं ढनमनी।। 5/3/4
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