धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी मानस और भागवत में पक्षीरामकिंकर जी महाराज
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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग
जिस समय श्रीराम ने यह कहा कि मैं सुग्रीव को भी उसी बाण से मारूँगा, जिससे बालि को मारा था, सुनकर एक क्षण के लिए लक्ष्मणजी चकित हो गये। ऐसा लगा कि भगवान् राम की भाषा सांसारिक व्यक्ति की भाषा है। पहले तो मित्र बनाया और अब मारने को तैयार हैं। देखकर ऐसा लग रहा है कि जैसे नरनाट्य में भगवान् बिल्कुल सांसारिक भाषा बोल रहे हैं, लेकिन ज्योंही लक्ष्मणजी ने कहा कि आप क्यों कष्ट करेंगे, मैं ही जाता हूँ और अभी सुग्रीव का वध करके आता हूँ तो भगवान् ने कहा कि लक्ष्मण! तुमने ध्यान नहीं दिया कि मैंने यह कहा कि जिस बाण से मैंने बालि का वध किया, उसी बाण से सुग्रीव का वध करूँगा। उसी बाण से मारने का अभिप्राय क्या है?
बालि के प्रसंग में भी यह संकेत आता है कि पहले तो बालि पर बाण चलाकर उसका संहार किया और बाद में बालि के सिर पर हाथ रख दिया और कहने लगे कि तुम जीवित रहो। बड़ा चक्कर है। कोई भगवान् से पूछे कि आपने पहले तो बालि का वध करने की प्रतिज्ञा की और अब उसी को जीवित रखने के लिए क्यों कह रहे हैं? भगवान् ने कहा कि अरे भई! जब मैं बालि को मारने की बात कहता हूँ तो बालि की आत्मा के रूप में जो दिव्य स्वरूप है, उसको मारने की बात थोड़े ही कहता हूँ? बालि में जो अभिमान आ गया है, उस अभिमान को मारने की बात कहता हूँ। जब बालि का अभिमान मिट गया तो अब बालि की मृत्यु का कोई प्रश्न नहीं है। इसलिए अब मैं बालि को जीवित रहने के लिए कहता हूँ।
मनुष्य के अन्तःकरण में जब वैराग्य उत्पन्न होता है तो या तो विचार उत्पन्न होता है या भय उत्पन्न होता है। किसी व्यक्ति में यदि बहुत आसक्ति हो तो या तो विचार करके उसे छोड़ दें, जैसे कोई रोग हुआ हो और उसमें वह कुपथ्य कर रहा हो तो या तो उसे बुद्धिमत्ता से विचार करके छोड़ देगा या तो उसको डॉक्टर आ करके यह भय दिखा दे कि तुमने अगर चीज खायी तो तुम्हारी मृत्यु अवश्यम्भावी है, तो फिर भय के मारे व्यक्ति उस व्यक्ति का परित्याग कर देगा।
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