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धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी

मानस और भागवत में पक्षी

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :42
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9816

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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग


बालि मेरा बंधु नहीं है, यह तो मेरा काल है। जल्दी से इसे मारकर मुझे बचाइए! भगवान् ने कहा कि हाँ, अब ठीक है। इसीलिए मैंने जो कहा था, वह तुम्हारा सत्य है। आप देखेंगे कि भगवान् फिर वहीं स्थित नहीं रहते हैं। भगवान् तब बालि का वध करते हैं, सुग्रीव को राज्य देते हैं और बाद में आप देखेंगे कि सुग्रीव में भोगासक्ति प्रबल हो जाती है। तत्त्वतः हनुमान् जी और लक्ष्मणजी ये दोनों वैराग्य के रूप हैं। हनुमान् जी भी –

प्रबल वैराग्य दारु प्रभंजन-तनय, -विनय पत्रिका, 58/8

और लक्ष्मणजी भी –

सानुज सीय समेत प्रभु राजत परन कुटीर।
भगति ग्यानु बैराग्य जनु सोहत धरें सरीर।। 2/321

श्रीराम ने लक्ष्मणजी को समझाने के लिए भेजा और इसके पूर्व ही हनुमान् जी जाकर सुग्रीव को समझाते हैं। इसका अभिप्राय क्या हुआ? कि पहले तो भगवान् राम ने कामनाओं की पूर्ति की और जब उन्होंने देखा कि यह तो इच्छाओं की पूर्ति में इतना उलझ गया कि इसी स्तर पर रहना चाहता है, तो भगवान् वैराग्य को भेजते हैं कि तुम जिस वैराग्य की बात पहले कर रहे थे, वह वैराग्य भी आवश्यक था, लेकिन उस समय नहीं, क्योंकि उस समय तक तुम्हारे अन्तःकरण का निर्माण ऐसा नहीं हुआ था, पर अब तुम्हें वैराग्य में स्थित हो जाना चाहिए। तब लक्ष्मणजी और हनुमान् जी दोनों सुग्रीव के पास गये। इसका अभिप्राय है कि वैराग्य के जो दोनों रूप थे, वे गये जिससे सुग्रीव के अन्तःकरण में वैराग्य की सृष्टि की जाय।

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