धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी मानस और भागवत में पक्षीरामकिंकर जी महाराज
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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग
भगवान् राम ने जब सुग्रीव से यह कहा कि तुम जाकर लड़ो तो इसका अभिप्राय यह है कि अच्छा भई! अब यहीं से पाठशाला का क्रम प्रारम्भ हो कि कर्म तुम करो, लेकिन उसका परिणाम देने का अधिकार, तुम्हारी विजय और बालि के वध का अधिकार मेरे पास रहेगा, क्योंकि यह तुम्हारे वश की बात नहीं। सुग्रीवजी लड़ने के लिए जा करके गर्जना करते हैं। बालि आता है और बालि और सुग्रीव में युद्ध होता है। बालि के एक-दो मुक्के में ही सुग्रीवजी का सारा ज्ञान और वैराग्य हवा हो गया। लौटकर भगवान् के पास आकर लगे उलाहना देने कि महाराज! आपने तो कहा था कि मैं बालि का वध करूँगा, मेरी समझ में नहीं आता कि फिर आपने मुझको इस तरह बालि से पिटने के लिए क्यों भेज दिया? आपने मारा क्यों नहीं? भगवान् ने मुस्कराकर कहा कि-
एकरूप तुम्ह भ्राता दोऊ।
तेहि भ्रम तें नहिं मारेउँ सोऊ।। 4/7/5
मुझे तुम और बालि बिल्कुल एक जैसे लगे, मैं पहचान ही नहीं पाया कि कौन सुग्रीव है और कौन बालि? फिर कैसे मारूँ? भगवान् का अभिप्राय था कि यदि तुम्हारा शत्रु और मित्र का भेद मिट चुका है तो मैं साक्षात् ब्रह्म होकर भी, मेरे जीवन में ही भेद बुद्धि शेष है क्या? मेरी दृष्टि में तो भिन्नता है ही नहीं। ऐसी स्थिति में मैं किसको मारूँ और किसको बचाऊँ? तब सुग्रीव अपनी कक्षा में आ गये। जो सुन-सुनाकर पाठ रट लिया था, उसके स्थान पर अब तो भगवान् से क्षमा माँगने लगे कि महाराज! जो मैंने मिथ्यात्व का सिद्धान्त कहा था, वह विचार बिल्कुल बदल गया है। क्या विचार हो गया भई! अब तो विचार यह है कि –
मैं जो कहा रघुबीर कृपाला।
बंधु न होइ मोर यह काला।। 5/7/5
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