धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी मानस और भागवत में पक्षीरामकिंकर जी महाराज
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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग
भगवान् श्रीराम ऐसा मानते हैं कि अभी तो सुग्रीव का जीवन सकामता की स्थिति में है, अभी तक सुग्रीव की विषयी प्रवृत्ति ही है, इसलिए सकामता की कक्षा से ही इसका पाठ प्रारम्भ होना चाहिए। जैसे माँ जब बालक को पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजना चाहती है तो कहती है कि अगर तुम पढ़कर आओगे तो मैं तुम्हें मिठाई दूँगी। माँ का उद्देश्य यह है कि पढ़ाई का प्रारम्भ पढ़ाई से नहीं बल्कि मिठाई से होना चाहिए। प्रारम्भ में ही कोई माँ कहने लगे कि मिठाई तो बड़ी बुरी वस्तु है, इसलिए मिठाई की चिन्ता छोड़ करके तुम तो शुद्धतापूर्वक पुस्तक में मन लगाओ, तब तो बालक शिक्षा के नजदीक भी नहीं जायेगा। इसलिए भगवान् राम ने सुग्रीव की शिक्षा प्रारम्भ की तो उसकी सकामता की पुष्टि करके ही प्रारम्भ की है और कहा कि मैं तुम्हारी कामनाओं को पूरा करूँगा। सुग्रीव ने भगवान् की बात को तो समझा नहीं, बल्कि तुरन्त भगवान् पर अहसान लाद दिया।
सुग्रीव कहने लगे कि महाराज! मैं तो अब बालि से लड़ना नहीं चाहता हूँ, परन्तु यदि आपको अपने सत्य की रक्षा की बहुत चिन्ता हो तो बात और है। आपके सत्य को बचाने के लिए मैं आपकी आज्ञा का पालन करूँगा। भगवान् ने कहा कि अच्छा, अभी मैं बताता हूँ कि तुम कहाँ पर बैठे हुए हो और किस भाषा में तुम अब बोल रहे हो? परिणाम यह हुआ कि भगवान् ने सुग्रीव को भेज दिया। वहाँ पर भी बात वही है। भगवान् की भाषा भी बड़ी अनोखी है। भगवान् बालक की तरह शिक्षा दे रहे हैं, पर बालक को भी धीरे-धीरे तत्त्वज्ञान की ओर ले जा रहे हैं, भक्ति की ओर ले जा रहे हैं।
भगवान् ने सुग्रीव से कहा कि तुम जाओ और गर्जना करके बालि को युद्ध के लिए ललकारो। सुग्रीव ने पूछा कि महाराज! आप मुझे क्यों भेज रहे हैं? बालि को आप मारेंगे कि मैं मारूँगा? भगवान् ने कहा कि बालि को मारूँगा तो मैं ही। पूछा कि फिर बालि से लड़ेगा कौन? भगवान् ने कहा लड़ोगे तुम। भगवान् ने ऐसी ही बात अर्जुन से भी कही थी। अर्जुन और सुग्रीव दोनों से एक जैसी ही बात भगवान् ने कही। एक ओर तो अर्जुन से कहते हैं कि तुम लड़ो और दूसरी ओर जब अपने विराट् रूप का दर्शन कराते हैं तो यह दिखाते हैं कि ये जितने भी योद्धा है, इन सबको मैं मार चुका हूँ। इसका अभिप्राय यह हुआ कि तत्त्वतः तो मैं इनको मार चुका हूँ, लेकिन निमित्त बन करके व्यवहार में तुमको इनका वध करना अभी बाकी है।
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