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धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी

मानस और भागवत में पक्षी

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :42
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9816

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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग


जैसे स्वप्न में किसी से लड़ाई हो जाने के बाद भी जागने पर व्यक्ति उससे नहीं लड़ता है, इसी प्रकार से जब सृष्टि मिथ्या हो तो बालि से मेरी शत्रुता भी मिथ्या है। इसीलिए आप कृपा कर तो रहे हैं लेकिन महाराज! मैं जैसा देखता हूँ, आप वैसी ही कृपा कीजिए। प्रभु ने पूछा कि कैसी कृपा चाहते हो? सुग्रीव ने कहा कि –

अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँती। 4/6/21

‘एहि भाँती’ शब्द में संकेत यह था कि आपने जिस भाँति से कृपा करने की बात कही है, वैसे नहीं। वह कुछ ऊँचा प्रतीत नहीं हो रहा है, तो तुम क्या चाहते हो?-

सब तजि भजनु करौं दिन राती। 4/6/21

बस! अगर आप मेरे ऊपर कृपा करना चाहते हैं तो आप मुझ पर ऐसी कृपा कीजिए कि जिससे हम सब कुछ छोड़कर आपका भजन करें। बात तो बड़ी विचित्र हो गयी। सुग्रीव की वाणी में ज्ञान है, वैराग्य है, भक्ति भी है। संसार के मिथ्यात्व का निश्चय है तो वैराग्य है, संसार में स्वप्न की प्रतीति है तो ज्ञान है और सब कुछ छोड़कर भजन करना चाहते हैं तो भक्ति है और भगवान् की भाषा में न तो ज्ञान दिखायी दे रहा है, न वैराग्य और न भक्ति। भगवान् की भाषा तो बिल्कुल सांसारिक थी, जैसा एक मित्र दूसरे मित्र को आश्वासन देता है, वैसी ही भाषा दिखायी देती है। अब सुग्रीव की बात ठीक है कि भगवान् की? गोस्वामीजी ने लिखा कि जब सुग्रीव ने इतनी ऊँची भाषा सुनायी तो लिखा हुआ है कि –

सुनि बिराग संजुत कपि बानी।
बोले  बिहँसि  रामु धनुपानी।। 4/6/22

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