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धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी

मानस और भागवत में पक्षी

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :42
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9816

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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग


प्रभु ने वैराग्य से भरी बन्दर की वाणी सुनी, यहाँ बन्दर शब्द बड़ा सांकेतिक है। बन्दर कब कहाँ छलाँग लगाएगा? इसका कोई ठिकाना नहीं है। बन्दर की जो छलाँग है, वह तो उसकी प्रकृति का एक अंग है। कभी बन्दर यदि मन्दिर के कँगूरे पर पहुँच जाय तो इसमें प्रसन्न होने की बात नहीं है कि अब तो यह सर्वोच्च शिखर पर पहुँच गया है। क्योंकि कब उस शिखर से उतर कर दूसरी छलाँग कहाँ लगेगी? इसका कोई ठिकाना नहीं है। भगवान् श्रीराम मुस्कराये और बोले कि मित्र!

जो कछु कहेहु सत्य सब सोई।
सखा बचन मम मृषा न होई।। 4/6/23

तुमने जो बात कही है वह सब सत्य है, तो फिर महाराज! आप इसी प्रकार से कृपा करेंगे न? भगवान् राम ने कहा कि नहीं भई! मेरी बात भी झूठी नहीं है। सुग्रीव ने इसका अर्थ यह ले लिया कि भगवान् यह कह रहे है कि भई! तुम बात तो बिल्कुल ठीक कर रहे हो, पर जब मैंने बालि को मारने की प्रतिज्ञा की है और अगर अब नहीं मारूँगा तो मेरी प्रतिज्ञा झूठी हो जाएगी, इसलिए तुम्हारी बात सत्य होते हुए भी मैं अपनी बात रखने के लिए तुमसे लड़ने के लिए कहूँगा। भगवान् का यह तात्पर्य नहीं है, अगर भगवान् को अपने सत्य की इतनी चिन्ता होती तो बाद में वैसे तो उन्होंने सुग्रीव को मारने के लिए भी कह दिया था-

जेहिं  सायक  मारा मैं बाली।
तेहिं सर हतौं मूढ़ कहँ काली।।4/17/5

जिस बाण से मैंने बालि को मारा है. उसी बाण से कल मैं सुग्रीव का वध भी करूँगा। अगर श्रीराम अपने शब्दों की रक्षा के लिए इतने व्यग्र होते तब तो सुग्रीव का भी अपहरण कराकर वध कर देते। भगवान् का सत्य शब्दमूलक सत्य नहीं है। शब्द का उद्देश्य क्या है? शब्द को पकड़कर ही जो शब्द में ही उलझ जाते हैं, वे सत्य के शरीर की ही पूजा करते हैं, सत्य की आत्मा की नहीं।

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