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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

फीनिक्स की स्थापना


सवेरे सबसे पहले तो मैंने वेस्ट से बात की। मुझ पर 'सर्वोदय' का जो प्रभाव प़ड़ा था, वह मैंने उन्हें सुनाया और सुझाया कि 'इंडियन ओपीनियन' को एक खेत पर ले जाना चाहिये। वहाँ सब अपने खान पान के लिए आवश्यक खर्च समान रुप से ले। सब अपने अपने हिस्से की खेती करे और बाकी समय में 'इंडियन ओपीनियन' का काम करे। वेस्ट ने इस सुझाव को स्वीकार किया। हर एक के लिए भोजन आदि का खर्च कम से कम तीन पौंड हो ऐसा हिसाब बैठाया। इसमे गोरे काले का भेद नहीं रखा गया था।

लेकिन प्रेस में तो लगभग दस कार्यकर्ता थे। एक सवाल यह था कि सबके लिए जंगल में बसना अनुकूल होगा या नहीं और दूसरा सवाल यह था कि ये सब खाने पहनने की आवश्यक साम्रगी बराबरी से लेने के लिए तैयार होगे या नहीं। हम दोनों ने तो यह निश्चय किया कि जो इस योजना में सम्मिलित न हो सके वे अपना वेतन ले और आदर्श यह रहे कि धीरे धीरे सब संस्था में रहने वाले बन जाये।

इस दृष्टि से मैंने कार्यकर्ताओ से बातचीत शुरू की। मदनजीत के गले तो यह उतरी ही नहीं। उन्हे डर था कि जिस चीज में उन्होंने अपनी आत्मा उडेल दी थी, वह मेरी मूर्खता से एक महीने के अन्दर मिट्टी में मिल जायेगी। 'इंडियन ओपीनियन' नहीं चलेगा, प्रेस भी नहीं चलेगा औऱ काम करने वाले भाग जायेंगे।

मेरे भतीजे छगनलाल गाँधी इस प्रेस में काम करते थे। मैंने वेस्ट के साथ ही उनसे भी बात की। उन पर कुटुम्ब का बोझ था। किन्तु उन्होंने बचपन से ही मेरे अधीन रहकर शिक्षा प्राप्त करना और काम करना पसन्द किया था। मुझ पर उनका बहुत विश्वास था। अतएव बिना किसी दलील के वे इस योजना में सम्मिलित हो गये और आज तक मेरे साथ ही है।

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