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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


तीसरे गोविन्दस्वामी नामक एक मशीन चलाने वाले भाई था। वे भी इसमे शरीक हुए। दुसरे यद्यपि संस्थावासी नहीं बनेस तो भी उन्होंने यह स्वीकार किया कि मैं जहाँ भी प्रेस ले जाऊँगा वहाँ वे आयेगे।

मुझे याद नहीं पडता कि इस तरह कार्यकर्ताओ से बातचीत करने में दो से अधिक दिन लगे होगे। तुरन्त ही मैंने समाचार पत्रो में एक विज्ञापन छपवाया कि डरबन के पास किसी भी स्टेशन से लगी हुई जमीन के एक टुकटे की जरूरत है। जवाब में फीनिक्स की जमीन का संदेशा मिला। वेस्ट के साथ मैं उसे देखने गया। सात दिन के अंदर 20 एकड़ जमीन ली। उसमें एक छोटा सा पानी का नाला था। नारंगी और आम के कुछ पेड़ थे। पास ही 80 एकड का दूसरा एक टुकड़ा था। उसमें विशेष रुप से फलोवाले पेड औऱ एक झोपड़ा था। थोड़े ही दिनो बाद उसे भी खरीद लिया। दोनों को मिलाकर 1000 पौंड दिये।

सेठ पारसी रुस्तमजी मेरे ऐसे समस्त साहसों में साझेदार होते ही थे। उन्हें मेरी यह योजना पसन्द आयी। उनके पास एक बड़े गोदाम की चद्दरें आदि सामान पड़ा था, जो उन्होंने मुफ्त दे दिया। उसकी मदद से इमारती काम शुरू हुआ। कुछ हिन्दुस्तानी बढ़ई और सिलावट, जो मेरे साथ (बोअर) लड़ाई में सम्मिलित हुए थे, इस काम के लिए मिल गये। उनकी मदद से कारखाना बनाना शुरू किया। एक महीने में मकान तैयार हो गया। वह 75 फुट लंबा और 50 फुट चौड़ा था। वेस्ट आदि शरीर को संकट में ड़ालकर राज और बढ़ई के साथ रहने लगे।

फीनिक्स में घास खूब थी। बस्ती बिल्कुल न थी। इससे साँपो का खतरा था। आरंभ में तो तंबू गाडकर सब उन्ही में रहे थे।

मुख्य घर तैयार होने पर एक हफ्ते के अन्दर अधिकांश सामान बैलगाडी की मदद से फीनिक्स लाया गया। डरबन और फीनिक्स के बीच क तेरह मील का फासला था। फीनिक्स स्टेशन से ढाई मील दूर था।

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