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धर्म एवं दर्शन >> सुग्रीव और विभीषण

सुग्रीव और विभीषण

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9825

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सुग्रीव और विभीषण के चरित्रों का तात्विक विवेचन


प्रभु का सब स्वभाव सुग्रीव के लिए बदल गया, क्योंकि प्रभु के मुख से मैंने पहले कभी नहीं सुना कि मैंने तुम्हारे लिए यह किया, तुम्हारे लिए वह किया और दूसरी बात यह कि यह बात तो सभी जानते थे कि आप बड़े शीलवान् हैं, बड़े क्षमाशील हैं, पर जब आपको क्रोध आ गया, पर वह क्रोध भी कितना उदार था? जीव जब आपको भूल गया तो इसमें आपकी क्या हानि थी? सुग्रीव का क्या महत्त्व था? जो अपने ही परिवार की रक्षा नहीं कर पाया, वह क्या कर सकता था? आपको तो कोई आवश्यकता नहीं थी, लेकिन इतना होते हुए भी आपके मन में जब क्रोध आ गया, आपके स्वभाव में जब परिवर्तन आ गया तो इससे मुझको लगता है कि प्रभु! आपको सुग्रीव का कितना ध्यान था, कितना अपनापन था? आपका यह स्वभाव कभी नहीं देखा कि आप ऐसा कहें कि मैंने यह किया, यह किया, यह किया, पर आप अपना शील-स्वभाव सुग्रीव के सन्दर्भ में भूल गये और आपने लक्ष्मण से यही कहा कि लक्ष्मण! चार महीने हो गये, सुग्रीव नहीं आया? लक्ष्मणजी ने कहा कि आपका जैसा स्वभाव है, उसमें यह कोई आश्चर्य थोड़े ही है! आपने ही कहा था कि जाओ! राज्य करो तो वह राज्य कर रहा है, भोगों को भोग रहा है –

सुग्रीवहिं सुधि मोरि बिसारी।
पावा राज कोस पुर नारी।। 4/17/4

आपको यदि कोई भेंट दे तो आप भेंट लें, पर भेंट देने वाले को तो आप याद रखें। उसके प्रति तो कृतज्ञता और स्नेह बढ़ेगा। भगवान् हमें कितना देते हैं? भगवान् से इतना लेने के बाद भी यदि हम उसे भूलने लगें! भगवान् ने कहा कि अरे! सुग्रीव ने भी मुझे भुला दिया! मैंने उसके लिए क्या नहीं किया?

पावा राज कोस पुर नारी।।

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