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धर्म एवं दर्शन >> सुग्रीव और विभीषण

सुग्रीव और विभीषण

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9825

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सुग्रीव और विभीषण के चरित्रों का तात्विक विवेचन


सुग्रीव की स्थिति तो ऐसी विचित्र है कि क्या कहा जाय? जब भगवान् ने सुग्रीव से मित्रता कर ली, पर सुग्रीव को विश्वास ही नहीं है कि ये बालि को मार पायेंगे। जीव ने भगवान् की परीक्षा ली। सुग्रीव ने भगवान् की परीक्षा ली, इसमें भी सुग्रीव का ही चमत्कार था। सुग्रीव ने कहा कि इन सात ताल के वृक्षों को एक ही बाण से अगर आप भेद दें और दुन्दुभि राक्षस की हड्डियों के ढेर को अपने पैर के नाखून से इतने योजन दूर फेंक दें तब मैं समझूँगा कि आप बालि को मार सकते हैं। भगवान् रुष्ट हो सकते थे कि तुम मुझ पर सन्देह करते हो, विश्वास की भी तुममें कमी है, नहीं मानते हो तो जाओ, पर भगवान् ने तुरन्त कहा कि जैसे तुम मानो हम वैसे ही मनायेंगे और भगवान् ने परीक्षा दी –

दुंदुभि अस्थि ताल देखराए।
बिनु प्रयास रघुनाथ ढहाए।।
देखि अमित बल बाढ़ी प्रीती।
बालि बधव इन्ह भइ परतीती।। 4/6/12-13

जब भगवान् ने कहा कि अब जाओ और बालि के आगे गर्जना करो, तो सुग्रीव ज्ञान-वैराग्य की बात करने लगा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए, अब आप ऐसी कृपा कीजिए कि हम सब कुछ छोड़कर आपका भजन करें –

सुख संपति परिवार बड़ाई।
सब परिहरि करिहहुँ सेवकाई।। 4/6/16

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