लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक वनस्पतियाँ

चमत्कारिक वनस्पतियाँ

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9829

Like this Hindi book 0

प्रकृति में पाये जाने वाले सैकड़ों वृक्षों में से कुछ वृक्षों को, उनकी दिव्यताओं को, इस पुस्तक में समेटने का प्रयास है

कपास (कर्पास)

 9829_03_Kapaas

विभिन्न भाषाओं में नाम-

संस्कृत - कर्पास, कर्पासी, तुण्डिकेरी।
हिन्दी - कपास मनवाँ।
बंगला - कापास गाछ।
मराठी - कापसी।
फारसी - दरख्ते पब।
अरबी - नबातुल कुत्न, शज्त्रतुल कुत्न।
अंग्रेजी - कॉटन प्लान्ट (Cotton Plant)
लैटिन - गॉस्सीपियम हर्बेसियम Gossypium herbaceum L.
कुल - Malvaceae (माल्वेसी)

कपास का पौधा कोमल, बहुशाखी, एक वर्षीय तथा छोटा होता हैं। इसकी खेती भारत में प्रतिवर्ष होती है। यह बढ़ने पर बहुवर्षीय हो जाता है। इसका पौधा सामान्यतः 0.9 मीटर से 1.5 मीटर ऊँचा होता है। यह अपनी नस्ल के अनुसार अंकुरित होता है, तथा परिपक्व बनता है। इनकी शाखाओं में कोमल भाग, पत्र, पत्र वृंत एव पुष्प आदि रोमयुक्त होते हैं। इनका पत्र वृंत लम्बा होता है। इनके सह पत्र प्रायः चौड़े, आधार की ओर गोलाकार तथा दन्तुर होते हैं। इनके पुष्प चमकीले, पीले रंग के, बाह्य दल जुडे हुये तथा अनेक छोटे-छोटे भागों में विभक्त रहते हैं। इनका फल लगभग 2/3 इंच लम्बा, अण्डे की आकृति के समान नुकीला तथा तीन कोष्ट युक्त होता है। इनके बीजों से एक प्रकार का तेल निकलता है, जिसे बिनोले का तेल कहते हैं। बीजों पर जाति के अनुसार लम्बे या छोटे, सफेद रंग के धागेनुमा बाल होते हैं। भारत के विभित्र प्रान्तों, जैसे-बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात आदि में कपास की खेती होती हैं।

आयुर्वेदानुसार कपास, एक मधुर, वात नाशक, मूत्रवर्धक, कर्णपीड़ा को हरने वाली, दुग्धवर्धक, वीर्यवर्धक तथा कफकारक वनस्पति है।

औषधि हेतु इसके पके फल, पुष्प, बीज तेल तथा जन्तुओं (रूई) का प्रयोग किया जाता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book