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कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9832

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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है

लीलामणी ने कहा- अभी ठहर जा, तेरी भाभी तेरे सफर के लिए खाना बना रही है।

अब उसकी भाभी कमला ने उसके सफर के लिए चूरमें के चार पिंड बनाए, और चारों में नौ-नौ करोड़ के चार लाल रख दिए, ताकि उन्हें बेचकर कोई कारोबार कर सके, परन्तु उसने अपने देवर हजारी प्रसाद को इस बारे में बताया नहीं क्योंकि यदि बता देती तो वो लाल लेने से मना कर देता। उसके अर्थात हजारी प्रसाद के हाथ में चूरमे का थैला देते हुए कमला ने कहा - ले देवर, यह आपके रास्ते का खाना है और हां संभल कर ससुराल जाना। हमसे जो बना हमने किया। यदि हमसे कोई भूल हुई हो तो माफ कर देना।

अपने हाथ में चूरमें का थैला लेते हुए हजारी प्रसाद ने कहा- लीलामणी, आप मेरे दोस्त ही नहीं अपितु आप तो मेरे बड़े भाई के समान के समान हैं आपने जो व्यवहार मेरे साथ किया वह तो एक भाई भी अपने भाई के साथ नहीं करता। आपका ये एहसान मैं जीवन भर नहीं भूलूंगा।

यह कहकर सेठ हजारी प्रसाद वहां से अपनी ससुराल चन्दनपुर जाने के लिए चल पड़ा।

सेठ हजारी प्रसाद शाम होते-होते चन्दनपुर पहुंच गया। भूख लगी थी सो उसने सोचा कि गांव से बाहर खाना खा लिया जाए। वह गांव से बाहर एक पेड़ के नीचे बैठा और खाना खाने लगा। जैसे ही उसने चूरमे का एक पिंड फोड़ा उसके अन्दर एक लाल निकला। जिसकी कीमत उस समय नौ करोड़ रुपये थी। फिर दूसरा खाने के लिए फोड़ा उसमें भी एक लाल था। उसने बारी-बारी से सभी पिंड खाए और चारों में चार लाल निकले। यह देखकर वह बार-बार यही सोच रहा था कि वास्तव में दोस्त हो तो ऐसा हो। खा-पीकर उसने चारों लाल अपनी जेब में रखे और गांव की ओर बढ़ चला। गांव में पहुंचने से पहले उसने एक लड़की को एक लडके से छुपकर बातें करते देखा। उस लड़की ने जब हजारी प्रसाद को देखा तो वह उसे पहचान नहीं पाई, मगर हजारी प्रसाद ने उसे जरूर पहचान लिया । जब तक वह उससे बातें करती रही सेठ हजारी प्रसाद उनकी बातें छिपकर सुनता रहा। वह लड़की उसे रात को पास वाले खाली मकान में बुलाने के लिए कह रही थी। इतना कहकर वह जैसे ही मुड़ी, हजारी प्रसाद ने कहा- तुम लाजवन्ती हो ना। सेठ धर्मचन्द की पुत्री।

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