आचार्य श्रीराम शर्मा >> मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदलेश्रीराम शर्मा आचार्य
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समय सदा एक जैसा नहीं रहता। वह बदलता एवं आगे बढ़ता जाता है, तो उसके अनुसार नए नियम-निर्धारण भी करने पड़ते हैं।
आज की अदृश्य किंतु दो महती समस्याऑ में से एक यह है कि लोग परावलंबन के अभ्यस्त हो चले हैं। दूसरों का ऊटपटांग अनुकरण करते ही उनसे बन पड़ता है। निजी विवेक इतना तक नहीं जागता कि स्वतंत्र चिंतन के सहारे जो उपयुक्त है, उसे अपनाने और जो अनुपयुक्त है, उसे बुहार फेंकने तक का साहस जुटा सकें। यह परावलंबन यदि छोड़ते बन पड़े, तो मनुष्य की उपयुक्तता को अपनाने का साहस भीतर से ही उठ सकता है और ''एकला चलो रे” का गीत गुनगुनाते हुए उपरोक्त तीनों क्षेत्रों में निहाल कर सकने वाली संपदा उपार्जित कर सकता है।
आज की सबसे बड़ी, सबसे भयावह समस्या एक ही है, मानवी चेतना का परावलंबन, अंत: स्फुरणा का मूर्छाग्रस्त होना, औचित्य को समझ न पाना और कँटीली झाड़ियों में भटक जाना। अगले दिन इस स्थिति से उबरने के हैं। उज्जवल भविष्य की समस्त संभावनाएं इसी आधार पर विनिर्मित होंगी। अगले दिनों लोग दीन-हीन, मनो-मलीन, उद्विग्न-विक्षिप्त स्थिति में रहना स्वीकार न करेंगे। सभी आत्मावलंबी होंगे और किसी एक पुरुषार्थ को अपनाकर ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी बन सकने में पूरी तरह सफल होंगे। वातावरण मनुष्य को बनाता है, यह उक्ति गए गुजरे लोगों पर ही लागू होती है। वास्तविकता यह है कि आत्मबल के धनी, अपनी संकल्प-शक्ति और प्रतिभा के सहारे अभीष्ट वातावरण बना सकने में पूरी तरह सफल होते हैं।
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