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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

38

शुरुआत


वह अपने शरीर से आधे कपड़े अलग कर चुकी तो बोली- ‘जल्दी करो बाबू साहब।’

‘मैं तुमसे कुछ बातें करने आया हूं...।’

‘बैठो’अधटूटी-सी कुर्सी में धंसते हुए सफेदपोश ने कहा।

‘धन्धे का टैम है बाबू... जल्दी करो। दूसरा ग्राहक आ गया तो

बेकार लफड़ा पड़ जाएगा।’

‘मैं इसलिए यहां नहीं आया।’

‘तो इधर क्या अपनी अम्माँ को ढूंढने आया है।’ बीड़ी का कश लेकर उसने आंखें तरेरी।

‘मैं तुम्हें मुक्त कराने आया हूं।’ मुंह न लगकर उसने अपनी बात स्पष्ट कर दी।

‘रोटियां...।’

‘रानी निकेतन में पहुंचा दूंगा।’

‘वहीं से तो धंधा शुरू हुआ था।’

बेचारा सफेदपोश गर्दन खुजलाते हुए भागने का बहाना खोज रहा था।

 

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