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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

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उन्मुक्त


अंजना अपने आदमकद शीशे के सामने खड़ी है... एक चित्र उसकी पुतलियों में समाया है... शराब के नशे में धुत्त प्रसूती अवस्था में लात-घुसों द्वारा माँ को पिताजी के द्वारा पीटना... दर्द भरी चीख... माँ का तड़फना और ढेर हो जाना... आज भी सहम गई है वह।

दूसरा चित्र, पड़ोस की नई नवेली निर्मला को कम दहेज के फलस्वरूप मिट्टी का तेल डालकर जला देना... सोचकर वह आज भी तड़फ उठी।

‘वह कभी शादी नहीं करेगी... कभी नहीं...’ अंजना की चीख निकल पड़ी।

‘क्या सारी उम्र’शीशे से आवाज उभरी।

‘हां-हां’

‘संरक्षण’

‘मेरी बाहों में है।’

‘पैसा’

‘मैं स्वयं कमाऊंगी।’

‘तन की भूख-?’

‘हजारों हैं...।’

‘बच्चे...?’

‘सोचा नहीं... आवश्यकता पड़ी तो...।’

‘तो इस सबके लिए पति क्यों नहीं...?’

‘नहीं- मैं दासता स्वीकार नहीं कर सकती’ अंजना शीशे में उभरी आकृति पर अपना पंजा रखकर उसे विलुप्त कर देती है।

 

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